स्पिति वैली यात्रा - 06 जून 2019 - काज़ा से नारकंडा
रात को मैं और विक्रांत पहले से ही सोच कर सोये थे की अगर हमे जयपुर जल्द-से-जल्द पहुँचना है तो काज़ा से सुबह जल्दी निकलना होगा l हम सुबह तय समय पर उठ गए, चाय पी, तैयार हुए, बाइक पर सामान लगाया l उधर रजत, राजेश और अश्विनी भी उठ चुके थे और वो भी चिटकुल निकलने के लिए तैयार हो रहे थे l अश्विनी की तबियत अब पहले से सही थी और वो अब अच्छा महसूस कर रहा था l क्योंकि हम काफी जल्दी निकल रहे थे इसीलिए साक्या होटल के मैनेजर ने विक्रांत और मेरे लिए नाश्ता भी तैयार करवा कर दे दिया, हम सबका साक्या होटल के साथ अनुभव काफी अच्छा रहा l रजत, राजेश और अश्विनी से मिल कर और विदाई ले कर विक्रांत और मैं सात बजे से पहले ही काज़ा से रवाना हो गए l हम सब को ये दुःख हो रहा था की मैं और विक्रांत चिटकुल नहीं जा पा रहे हैं लेकिन हमे अब जल्द से जल्द जयपुर पहुँचना था l
आज हमे पता नहीं था की हमारी मंजिल कहाँ है, हमारा लक्ष्य तो जल्द से जल्द जयपुर पहुँचने का था l हमारे दिमाग में कुछ भी नहीं था और हमने ये योजना बनायी की जहाँ बिलकुल थक जायंगे, वहीँ रुक जाएँगे l ऐसी यात्राओं पर बिना मंजिल को दिमाग में रखे हुए चलने का ये पहला अनुभव था और वाकई ये अनुभव बहुत लाज़वाब था क्योंकि किसी अमुक जगह पर पहुँचने का कोई दबाव नहीं था l
सुबह-सुबह जबरदस्त ठण्ड पड़ रही थी और हम अपने गर्म दस्तानों तक में इसका एहसास कर सकते थे l काज़ा से निकलते ही काफी दूर तक कच्ची सड़क ही मिलती है फिर भी हम सही रफ़्तार में चल रहे थे l जहाँ भी बेहद ख़राब सड़क आती थी मुझे मेरी बाइक के अगले टायर की चिंता हो जाती थी l उधर रजत, राजेश और अश्विनी भी नाश्ता करके लगभग आठ बजे चिटकुल के लिए निकल गए l काज़ा से करछम तक हमारा रास्ता एक ही था और करछम से हमारे रास्ते अलग होने थे वो चिटकुल की तरफ जाने वाले थे और हम स्पिल्लो की तरफ l
स्पिति नदी के किनारे किनारे हम ताबो की ओर चलते रहे l कुछ देर बाद जब सूरजदेव के दर्शन हुए तब जा कर ठण्ड से थोड़ी राहत मिली l हम काफी अच्छी रफ़्तार से चल रहे थे और सुबह के नौ बजे से पहले ही हम नाको पहुँच गए l नाको के बाद हमे भूख लगने लगी और हमने एक अच्छी सी जगह देख कर नाश्ता किया l खाब संगम से पहले आई चढ़ाई पर चढ़ते हुए बहुत ही लाजवाब दृश्य देखने को मिले और एक बार तो ऐसा लगा जैसे के हम जाते वक़्त ये दृश्य देख ही नहीं पाए l लगभग पौने-ग्यारह बजे हम खाब संगम पहुँच गए, थोड़ी देर यहाँ रुके और फिर आगे के लिए रवाना हो गए l
लगभग ग्यारह बजे हम स्पिल्लो पहुँच गए और यहाँ बैठ कर चाय पी और कुछ देर आराम किया l उधर रजत, राजेश और अश्विनी भी हमारे पीछे पीछे चल रहे थे लेकिन वो स्पिल्लो से काफी पीछे थे l हम जब स्पिल्लो में चाय पी रहे थे तब मौसम अचानक ही बदलने लग गया l ठंडी हवाएँ चलने लगी, चारों ओर बादल आ गए और अचानक ही हलकी हलकी बारिश होने लग गयी l मौसम का बिगड़ना यक़ीनन हमारे लिए अच्छा नहीं था इसीलिए हमने कुछ देर बारिश के रुकने का इन्तिज़ार किया l हमारा निर्णय सही साबित हुआ और कुछ ही देर में बारिश रुक गयी l
चाय पी कर हम स्पिल्लो से निकले ही थे की बमुश्किल 8-9 किलोमीटर बाद ही एक बार फिर बारिश आ गयी l हमने एक पहाड़ की ओट में शरण ली, कुछ देर बारिश रुकने का इन्तिज़ार किया l जब काफी देर तक बारिश नहीं रुकी तब विक्रांत और मैंने हमारे वाटरप्रूफ कपडे और जूते निकाले, पहने और फिर निकल पड़े l करछम तक मौसम साफ़ हो गया लेकिन फिर अचानक ही विक्रांत की बाइक के गियर्स में खराबी आ गयी l विक्रांत की बाइक के गियर्स अटक रहे थे और वो गियर्स नहीं बदल पा रहा था, ये एक बड़ी समस्या था क्योंकि पहाड़ों में आपको बार बार गियर्स बदलने पड़ते है l हम बाइक मैकेनिक भी ढूंढते चल रहे थे लेकिन हमे पता था की रामपुर से पहले बजाज का सर्विस सेंटर या कोई बाइक मैकेनिक का मिलना काफी मुश्किल है l
विक्रांत की बाइक में गियर्स की समस्या के कारण हमारी रफ़्तार भी काफी धीमी हो चुकी थी l आखिरकार झकरी में हमे एक बाइक मैकेनिक मिला और उसने बाइक सही करने की कोशिश भी की लेकिन उसके पास बजाज एवेंजर के पार्ट नहीं थे इसीलिए बाइक वहाँ भी सही नहीं हो पायी l अब हमारी सारी उम्मीदें रामपुर पर टिकी हुई थी l शाम लगभग साढ़े-छ बजे हम रामपुर स्तिथ बजाज के सर्विस सेंटर पर पहुँच गए लेकिन हमारी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया क्योंकि ख़राब पार्ट वहाँ भी नहीं था l अब हमे ये निर्णय लेना था की हम रामपुर ही रुकें या आगे बढ़ जाए, हमे उम्मीद थी की शायद बाइक शिमला में ठीक हो जाए l शाम के सात बज रहे थे और अभी उजाला था तो हमने सोचा की अभी आगे बढ़ने में ही फायदा है l हम उम्मीद कर रहे थे की हम यहाँ से नारकंडा तक तो जा ही सकते है जो की लगभग 65 किलोमीटर था l
उधर रजत, राजेश और अश्विनी शाम पाँच बजे के आस पास चिटकुल पहुँच चुके थे और चिटकुल की खूबसूरती देखकर सम्मोहित हो गए थे l बसपा नदी के किनारे बसा हुआ लगभग 11,320 फीट की ऊँचाई पर स्तिथ चिटकुल बेहद ही खुबसूरत गाँव है l चिटकुल स्तिथ उनका होटल ठीक-ठाक सा था और उस दिन वातावरण में ठण्ड भी बहुत ज्यादा थी l यहाँ पर रजत ने रात में आकाश के नजारों को खासकर मिल्की-वे को अपने कैमरे में कैद करने की योजना बनायीं l इसके लिए इससे ज्यादा अच्छी जगह उसे शायद कहीं नहीं मिलती l
इधर हम नारकंडा निकल तो गए थे लेकिन हमे पता था की विक्रांत को नारकंडा की चढ़ाई पर उसकी बाइक को चढाने में काफी तकलीफ होने वाली है l कुछ ही देर में अँधेरा हो गया, ठण्ड बढ़ गयी और जैसा की हमे आशंका थी कुछ जगह पर विक्रांत की बाइक सीधी चढ़ाई नहीं चढ़ पा रही थी तो उस जगह विक्रांत अपनी बाइक रोकता और फिर हम बाइक को अपने हाथों से पहले या दुसरे गियर में लाने की कोशिश करते l ऐसे प्रयास करते करते आखिरकार हम रात साढ़े नौ बजे नारकंडा पहुँच ही गए l नारकंडा के मुख्य चौक पर चारों ओर काफी होटल है, हमने दो-तीन जगह प्रयास किया लेकिन उस दिन अत्यधिक पर्यटकों की वजह से हमे कमरा नहीं मिल रहा था l
हम बेहद थक चुके थे और मन कर रहा था की जल्दी से एक अच्छा सा होटल मिल जाए तो बस खाना खा कर सो जाए l कुछ देर घुमने के बाद आखिरकार थोडा अन्दर जा कर हमे एक छोटे से होटल में एक कमरा मिल ही गया तब जाकर हमारी साँस में साँस आई l कमरा बहुत ज्यादा अच्छा नहीं था लेकिन हमारे पास अन्य कोई विकल्प भी नहीं था l सामान रख कर गर्म पानी से हाथ मुँह धोये, खाना खाया और रात के लगभग ग्यारह बजे हम बिस्तर पर लेटे l आज की यात्रा बहुत थकाने वाली थी और हमने लगभग 365 किलोमीटर बाइक चलायी l जाते वक़्त नारकंडा से काज़ा हम तीसरे दिन पहुँचे थे और आज हम एक ही दिन में काज़ा से नारकंडा आ गए थे जो की काफी अविश्वसनीय सा लग रहा था l
उधर रजत, राजेश और अश्विनी ने खाना खा लिया था और अब रजत मिल्की-वे के फ़ोटोज़ लेने के लिए तैयार था l इसके लिए रजत ने अपने फ़ोन में एक एप्प डाल रखी थी जो मिल्की-वे की पोजीशन बताती थी l रात के करीबन साढ़े-दस बजे रजत ने मिल्की-वे की कुछ बेहतरीन और लाज़वाब फ़ोटोज़ लिए l एक शौकिया फोटोग्राफर के जीवन में ऐसे यादगार फ़ोटोज़ लेने के मौके बहुत कम नसीब होते हैं l
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