लेह लद्दाख़ यात्रा 2017 - 12 सितम्बर - केलोंग से पांग
आज हम आराम से
उठे क्योंकि योजना के अनुसार आज हमे सरचू जाना था जो की लगभग 100 किलोमीटर ही था l सुबह
उठे और होटल की छत पर गए l सुबह सुबह बहुत हलकी सी गुलाबी ठण्ड थी और मौसम बिलकुल
साफ़ था l भगवान् सूर्यदेव ने भी दर्शन दे दिए थे l चारों और हरियाली से ओत-प्रोत
पहाड़, बिलकुल साफ़ नीला आकाश, दूर कुछ पहाड़ों की चोटियों पर चमकती हुई चाँदी जैसी
बर्फ, ऑक्सीजन से भरपूर साफ़ हवा और हाथ मे कड़क चाय, और क्या चाहिए ? कई बार मन
करता है कि सब कुछ छोड़- छाड़ कर ऐसी जगह ही बस जाएँ l मन कर रहा था कि यूँ ही बैठे रहे पर हमे अभी बहुत कुछ देखना था सो हम सब नहा-धो कर तैयार हो गए l
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सामने वाले ढ़ाबे के यहाँ आलू के पराँठे खाए और चाय
पी l नाश्ता करने के बाद करीब सुबह के 10 बजे हम सरचू के लिए रवाना हुए l केलोंग
से आगे जिस्पा पड़ता है जो कि केलोंग से लगभग 23 किलोमीटर दूर और 10,500 फीट की ऊँचाई पर
स्थित है l केलोंग से जिस्पा की सड़क अच्छी है, बस कुछ ही जगह थोड़ी बहुत ख़राब है l
जिस्पा पहुँच कर हमे लगा की हमे जिस्पा रुकना चाहिए था क्योंकि जिस्पा भी बहुत
खूबसूरत जगह है, यहाँ पर रुकने के लिए काफी अच्छे होटल है और कुछ टेंट तो बिलकुल
नदी के किनारे रुकने का अवसर प्रदान कर रहे थे जो की अपने आप मे अगल ही अनुभव होता
l खैर कोई नही, अगली बार यहाँ रुक जाएँगे, मन मे विचार आया l जिस्पा से होते हुए हम दारचा पहुँच गए, यहाँ पर एक बार फिर पुलिस चेकपोस्ट पर हमने
हमारे कागजात दिखाए और एंट्री करवाई l इस पुरे मार्ग पर कई पुलिस चेकपोस्ट है जो
की ये सुनिश्चित करते है कि आप सुरक्षित रहे और किसी भी विकट परिस्तिथी मे पुलिस या सेना
आपको खोज सकें l
दारचा से निकलते
ही सड़क बद से बदतर हो गयी l सड़क पूरी तरह कच्ची थी और मिट्टी, गड्ढे और छोटे छोटे
पत्थर ने हमारी रफ़्तार थाम दी थी l चारों ओर भूरे-लाल पत्थर के पहाड़ दिख रहे थे और
हरियाली का नामोनिशाँ मिट चूका था l कुछ ही देर मे हमे हमारी इस यात्रा का पहला
बड़ा पानी का दरिया मिला l सड़क के बांयी ओर पहाड़ था, जहाँ से पानी झरने के रूप मे
बह रहा था l सड़क के दांयी ओर गहरी खायी थी l पानी के गिरने और बहने से सड़क पर
बड़ा गड्ढा हो गया था जिसमे पानी ही पानी था l पानी का वेग बहुत तेज़ था l इस तरह के बहते हुए पानी के पार जाने के लिए
कई चीजें ध्यान रखनी होती है जैसे किधर सबसे कम गड्ढा है,,कहाँ पर सबसे कम पत्थर
है, कहाँ पर पानी का वेग सबसे कम है और सबसे जरुरी की खाई की तरफ से पार नही
करना है l आपकी बाइक पर लदा सामान और बाइक का खुद का वज़न भी जितना ज्यादा होता
है उतना ही पार करने मे मुश्किल आती है l हम सबने वुडलैंड के जूते पहने हुए थे
परन्तु ये वाटरप्रूफ नही थे इसीलिए पहले हमने अपने जूते बदले क्योंकि इस बात की बहुत
संभावना थी कि पार करते वक़्त अगर हमारा संतुलन बिगड़ गया तो हमे पैर पानी मे रखना
ही पड़ेगा l पूरी तैयारी के बाद हम सब एक-एक
करके पानी का वो दरिया पार करके दूसरी ओर पहुँच गए l इसे पार करने मे हमे बहुत
मज़ा आया और हमारा रोमाँच चरम पर पहुँच गया l
वहाँ कुछ दूर निकलते
ही सड़क की हालत मे काफी सुधार आ गया था और हमने दुबारा रफ़्तार पकड़ ली l अचानक हमे
कुछ ही दुरी के सड़क के बांयी ओर कुछ झील जैसा दिखाई दिया तो हम वहाँ रुक गए l ये
दीपक ताल थी जो कि एक छोटी सी मगर बेहद साफ़ पानी की झील थी l वहाँ कुछ देर हमने रुक कर तस्वीरें ली और आगे बढ़
गए l दीपक ताल से आगे जा कर हमे भारतीय सेना की पोस्ट मिली l सड़क के दोनों ओर
भारतीय सेना की ये काफी बड़ी पोस्ट थी l इस इलाके मे भारतीय सेना काफी सक्रिय रहती
है क्योंकि चीन और पकिस्तान इस इलाके से पास ही है l हम जैसे लोग तो कभी-कभार ही इन दुर्गम इलाकों मे
आते है परन्तु हमारे देश के सेना दुर्गम से दुर्गम इलाकों में भी अपना आशियाना
बना कर देश के दुश्मनों से हमारी रक्षा करती है l इसके साथ साथ ही सेना ने ऐसी
दुर्गम सड़क पर भी हर थोड़ी दूर पर ऐसी पोस्ट बना रखी है जहाँ पर वो एक सामान्य नागरिक
की भी मदद करते है l असल मे इस इलाके मे ज्यादा व्यावसायिक गतिविधियाँ नही होने
की वजह से भारतीय सेना ही एकमात्र संगठन है जो कि सामान्य नागरिकों की मदद कर
सकती है l ऐसे दुर्गम इलाके मे भी सेना और सेना के वाहन देखते ही आपको अपने
सुरक्षित होने का एहसास होता है l
अच्छी और ख़राब
सड़कों के हिस्सों को पार करते हुए हम बारालाछा ला की चढ़ाई चढ़ने लग गए l बारालाछा
ला चढ़ते हुए हमे रास्ते मे सूरज ताल मिली l
सूरज ताल भारत में तीसरी सबसे ऊँचाई पर स्थित एक झील है l मनाली-लेह राजमार्ग के
दांयी तरफ स्थित, चारों ओर भूरे-लाल पहाड़ों के बीच ये झील हरे रंग की आभा देती हुई
दिखती है l बारालाछा ला पास की ऊँचाई 16,040 फीट है और ये कब आया और कब चला गया
हमे पता ही नही चला l बारालाछा ला पास के उतरने के बाद सरचू के पास आते-आते सड़के
काफी सही हो गयी l कुछ ही देर बाद हमे दूर से सड़क के दोनों ओर सफ़ेद टेंट दिखाई
देने लग गए तो हमे एहसास हो गया कि हम सरचू पहुँच गए है l सरचू 14070 फीट की ऊँचाई
पर स्थित है l दूर से ये घाटी सा प्रतीत होता है, इस घाटी के बीच मे एक सड़क है l
सड़क के दोनों ओर रुकने के लिए स्थानीय लोगों के द्वारा 4-5 महीने के लिए अस्थायी टेंट
बनाये जाते है जो की लगभग मई से सितम्बर तक लगे रहते है l
ये क्या ? हमने
देखा की अधिकतर टेंट वाले अपना टेंट समेट रहे थे l पर्यटकों की संख्या मे कमी आने
की वजह से ये सब अपने टेंट समेट रहे थे l हालाँकि कुछ टेंट अभी भी संचालित हो रहे
थे और अगर हमे रुकना पड़ता तो हम सरचू ही रुक सकते थे l खैर हम सरचू स्थित चेकपोस्ट
पहुँचे और अपनी कागज़ी कार्यवाही पूरी की l इस वक़्त लगभग दोपहर के साढ़े तीन बज रहे
थे और हमने देखा की अधिकतर लोग सरचू नही रुक रहे थे l पहले हमारी योजना सरचू
रुकने की ही थी पर हमने भी सोचा क्यों ना हम भी पांग रुक जाएँ जो की वहाँ से लगभग
70 किलोमीटर ही था l हमने थोड़ी तहकीकात की तो पता चला की इस 70 किलोमीटर मे से लगभग 40 किलोमीटर सड़क
बहुत ख़राब है l अब चूँकि ख़राब सड़क का डर तो हमारा दूर हो चूका था इसीलिए हम विचार कर सरचू
से पांग के लिए रवाना हो गए l
सरचू से निकलते
ही एक बार फिर सड़क बहुत ख़राब हो गयी, असल मे सड़क थी ही नही l सड़क के नाम पर वही मिट्टी, छोटे बड़े पत्थर,
फिसलन, धुल इत्यादि l हमारी रफ़्तार पर बिलकुल ब्रेक लग गया था l हम बमुश्किल 20 किलोमीटर
प्रति घंटा भी नही चल पा रहे थे l अचानक ही सड़क पर पानी बहता हुआ मिला l सड़क के
दांयी तरफ पहाड़ से लगातार पानी आ रहा था और वो पानी सड़क पर बह रहा था l पूरी सड़क
पर गोल गोल पत्थर थे l सड़क U शेप मे नीचे उतरती हुई सरचू के ब्रिज से मिल रही थी l
सड़क के इस हिस्से से गुजरते हुए हमे अपना संतुलन बनाने मे खासी कसरत करनी पड़ी पर
मज़ा बहुत आया l सरचू से पांग का भूभाग बहुत ही अजीब है l ये आपको एहसास करा देता
है की जैसे आप पृथ्वी पर नही किसी और ग्रह पर हो l अजीबो गरीब आकृति के पहाड़,
मिट्टी की अजीब अजीब सी संरचना देख कर लगता है कि क्या वाकई इनको कुदरत ने बनाया
है ?
अच्छी-बुरी सड़क
के हिस्सों से होते हुए हम “गाटा लूप्स” पहुँच गए l गाटा लूप्स पहाड़ पर चढ़ती हुई
सड़क है जिसमे की 21-22 तीखे हेयरपिन जैसे लूप्स है और ये आपको नकीला पास ले जाते
है जो की मनाली-लेह राजमार्ग पर स्थित तीसरा सबसे ऊँचा पास है l सड़क का ये
हिस्सा काफी अच्छा था और तीखे मोड़ पर बाइक चलाना बहुत अच्छा लग रहा था l काफी देर
बाद अच्छी सड़क मिली थी तो मैं थोडा तेज़ रफ़्तार मे चल रहा था और सत्या और विक्रांत मुझसे
पीछे थे l अचानक ही मुझे बाइक के इंजन के पास से धुआँ दिखा तो मैंने बाइक साइड मे
रोक ली l वो धुँआ देखकर मैं बहुत डर गया और तनाव मे आ गया क्योंकि मुझे लगा की अगर
बाइक बंद पड़ गयी तो क्या होगा ? शाम होने चली थी और शाम के समय इस राजमार्ग पर मदद
मिलना बहुत मुश्किल है l हम तीनों की बाइक पर पूरा सामान लदा हुआ है ऐसे मे अगर
बाइक को यहाँ छोड़ कर भी जाना हो तो वो भी काफी मुश्किल काम होगा l मैंने अच्छी तरह से
मेरी बाइक का मुआएना किया तो पता लगा की कुलेंट जो की बाइक के इंजन को ठंडा रखता
है, वो कुलेंट बॉक्स से बाहर निकल गया था l इसी बीच सत्या और विक्रांत भी आ चुके
थे पर उनको भी इस बारे मे ज्यादा पता नहीं था l मेरी बाइक मे लगभग 1000 ml कुलेंट
रहता हैं जिसमे से करीब 750 ml रेडियेटर मे और 250 ml कुलेंट बॉक्स मे रहता है l
कुलेंट कम होने पर इस बॉक्स मे और कुलेंट डाल सकते है और बाइक अपनी जरुरत के
हिसाब से इसका उपयोग करती रहेती है l मैंने देखा की कुलेंट बॉक्स पूरी तरह से खाली
हो चूका था l मुझे, विक्रांत और सत्या को कुछ भी समझ नही आ रहा था, शाम हो
चुकी थी और हमको पांग पहुँचना ही था l चूँकि रेडियेटर मे तो कुलेंट था ही और बाइक
के मुख्य डिस्प्ले पर कुछ भी चेतावनी का संकेत भी नहीं था सो हमने निर्णय लिया कि
जब तक बाइक चल रही है तब तक चलते है, वैसे भी हमारे पास इसके सिवाय कोई
दूसरा विकल्प नही था l
भगवान् का नाम ले
कर हम निकल गए और जल्द ही नकिला पास पहुँच गए जिसकी ऊँचाई लगभग 15,547 फीट थी l हालाँकि
मेरी बाइक सही चल रही थी परन्तु नकिला पास उतरते वक़्त मैंने अपनी बाइक बंद कर दी
ताकि इंजन गर्म ना हो l नकिला पास उतरते ही सड़के दुबारा ख़राब हो गयी l हमने अगला
पास भी पार कर लिया जिसका नाम था लाचुंग-ला और इसकी ऊँचाई थी लगभग 16,616 फीट l हम बहुत थक चुके
थे, सड़के बहुत ख़राब हालत मे थी l हमारे पास पानी भी ख़त्म हो चूका था और अभी पांग
का कुछ पता नही था l चूँकि शाम हों चुकी थी इसीलिए ठण्ड भी अचानक बहुत तेज़ हो
गयी थी l चारों और पहाड़ों की अजीब अजीब संरचनाये दिख रही थी l पूरा भूभाग बिलकुल
उजड़ा उजड़ा लग रहा था l दिमाग मे बाइक को लेकर अलग तनाव था और आश्चर्य था कि सरचू
के बाद हमे इस रास्ते पर कोई इक्का-दुक्का आदमी ही दिखा था l सरचू से निकले तब हमे
लग रहा था की 70 किलोमीटर तो कोई ख़ास बात नहीं है पर ये 70 किलोमीटर ख़त्म ही नही हो रहे थे l
कुछ देर और चलने
के बाद जैसे ही एक तीखे मोड़ से हम मुड़े तब हमे दूर कुछ बस्ती सी दिखाई दी और हमारे
चेहरे पर मुस्कान तैर गयी क्योंकि हमे विश्वास था की ये पांग ही होगा l बस कुछ ही
पलों मे हम वहाँ थे, वहाँ सड़क के दोनों ओर एक दुसरे से सटे हुए कई ढ़ाबे बने हुए थे
l हालाँकि ये सब अस्थायी ढ़ाबे थे पर आने-जाने वाले लोगों के लिए ये किसी फाइव-स्टार
होटल से कम नही थे l उन ढाबों के सामने खूब सारी बाइक्स खडी हुई थी क्योंकि शाम
हो चुकी थी और इस वक़्त सभी राहगीर पांग मे ही रुक गए थे l पांग पहुँच कर जो चीज़
सबसे पहले महसूस हुई वो थी वहाँ की ठण्ड और हवा मे ऑक्सीजन के बेहद कम मात्रा
क्योंकि पांग 15,400 फीट की ऊँचाई पर स्थित है l हमने रुक कर 2-3 ढाबों पर जा कर निरिक्षण
किया और पाया की चूँकि हमे पांग पहुँचने मे देर हो गयी थी और इस बीच अधिकतर अच्छे
ढ़ाबे भर गए थे l
इसी बीच एक ठीक-ठाक से दाबे को संचालित कर रही वृद्ध महिला ने हमे
आवाज़ दी और हमसे आग्रह किया की हम उनके पास ठहर जाएँ l उस ढ़ाबे में प्रवेश करते ही
बाईं ओर रसोई थी और रसोई के बाद एक-दुसरे से सटे हुए करीब 8-9 पलँग लगे हुए थे l
उसके बाद सबसे अंत मे एक अस्थाई सा कमरा था जिसमे करीब 6 बिस्तर लगे हुए थे l इस कमरे
के साथ लगता हुआ एक छोटा सा बाथरूम भी मौजूद था l ढ़ाबे वाली आंटी ने हमे बोला की
600 रूपये मे हम ये पूरा कमरा ले सकते है l इतनी सर्द मौसम मे लगभग पक्का कमरा
वो भी बाथरूम के साथ 600 रूपये मे ! इससे अच्छा क्या मिल सकता था सो हमने ये मौका
हाथो-हाथ लपक लिया l उस दिन उस ढ़ाबे पर हम तीनों के सिवाए और कोई नहीं रुका हुआ था
l
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