Bike Trip To Leh Ladakh | लेह लद्दाख़ यात्रा - 19 सितम्बर - लेह से सोनमर्ग
लेह लद्दाख़ यात्रा 2017 - 19 सितम्बर - लेह से सोनमर्ग
लेह
से सोनमर्ग की दुरी लगभग 350 किलोमीटर है और रास्ते का सबसे बड़ा आकर्षण है जोजिला पास
l जोजिला पास हमारी इस
यात्रा मे पड़ने वाला आखिरी पास था l सोनमर्ग तक दुरी ज्यादा थी इसीलिए हम सुबह
जल्दी उठ गए l हमारी योजना थी के हम सोनमर्ग शाम पाँच-छ बजे
तक पहुँच जाए तो वहाँ भी थोडा घूम फिर ले l सामान
तो लगभग हमने रात को ही तैयार कर लिया था और सुबह नहा-धो कर अपनी अपनी बाइक पर बाँध लिया l अब हमारे पास तीन भरे हुए पेट्रोल के केन थे, जिन्हें हम मनाली से
ही ढो रहे थे, लेकिन किसी की बाइक मे कहीं भी इन्हें उपयोग लेने की जरुरत महसूस
नही हुई l हाँ, ये केन नुब्रा वैली मे काम आ सकते थे अगर वहाँ नया पेट्रोल पंप नही
मिलता तो l इतने पेट्रोल को साथ ले जाने का कोई औचित्य नही था क्योंकि इस मार्ग पर
पेट्रोल आसानी से मिल जाता है इसीलिए हमने एक एक केन सबकी मोटरसाइकिल मे डाल लिया l होटल वाले भाई साहब से
विदा ले कर हम लगभग सुबह साढ़े आठ बजे के आस पास लेह से निकल गए l
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श्रीनगर
– लेह राजमार्ग हमारे देश के लिए सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है इसीलिए ये
सड़क लगभग हमेशा अच्छी स्तिथि मे रहती है l सड़क अच्छी थी, यातायात ज्यादा था नही तो हम
बिना रुके अच्छी रफ़्तार से जल्द ही लामायुरु पहुँच गए l इस
जगह को मूनलैंड भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ का भूभाग चाँद की सी आभा देता है l लामायुरु
मे चारो ओर हल्के भूरे रंग के पहाड़ है और दूर से ये पहाड़ कच्ची मिट्टी से निर्मित
लगते है l चारों ओर इन पहाड़ों पर सफ़ेद सफ़ेद इमारतें बनी
हुई है जो या तो होटल है या निजी आवास l यहाँ पर लामायुरु मोनेस्ट्री भी है जो कि काफी
प्रसिद्ध है l लामायुरु मे एक सड़क किनारे रेस्टोरेंट पर हम
रुक गए क्योंकि हमने नाश्ता नही किया हुआ था और हमे भूख लग रही थी l जब
तक हमारा खाना बना तब तक हमने फ़ोटोज़ लिए l खाना खा कर और कुछ देर सुस्ता कर हम आगे रवाना
हो गए l
रास्ते
मे जहाँ भी खुबसूरत सा दृश्य दिखता, हम वहाँ फोटो लेते और आगे बढ़ जाते l दोपहर
लगभग तीन बजे हम कारगिल होते हुए कारगिल वार ममोरिअल पहुँचे जो की द्रास मे स्तिथ
है l वहाँ गेट पर ही सारा सामान जमा करवाना होता है, उसके
बाद एक ID दिखाने के बाद रजिस्टर मे एंट्री होती है और
फिर आप कारगिल वार मेमोरियल घूम सकते है l ये वार मेमोरियल उन सभी शहीदों को समर्पित है
जिन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान अपनी जान गंवाई थी l ये
वार मेमोरियल तोलोलिंग पहाड़ी की तलहटी पर स्तिथ है और इसका भारतीय सेना ने बहुत
अच्छे से रखरखाव किया हुआ है l भारतीय सेना ने वहाँ पर कुछ युद्धक सामान भी
प्रदर्शित किये हुए है जैसे तोप, हवाई जहाज इत्यादि l इस पुरे इलाके को घुमने के पश्चात हम देख सकते थे कि
कारगिल युद्ध वास्तव मे बहुत ही कठिन था क्योंकि दुश्मन ऊँचाई पर स्तिथ था और
भारतीय सेना को नीचे से ऊपर चढ़ कर कब्ज़ा करना था l इस युद्ध मे हमारे बहुत जवान वीरगति को
प्राप्त हुए और उन सभी का नाम इस वार मेमोरियल मे लिखा हुआ है l इन सभी वीरों को नमन करके लगभग एक घंटा वहाँ बिताने के बाद हम सोनमर्ग के लिए रवाना हो गए l
थोडा
आगे पहुँच कर चाय पीने की इच्छा हुई तो हम रास्ते मे एक छोटे से गाँव मे रुक गए l यहाँ
हमने चाय पी और बिस्किट खाए l शाम के करीबन पाँच बज गए थे और हमे अभी जोज़िला
पास पार करना था इसीलिए हम चाय पीते ही जोज़िला की ओर निकल गए l
जोज़िला के करीब आते ही, जैसा की हर पास पर हुआ, कच्ची और ख़राब सड़क चालु हो गयी l जैसे ही जोज़िला की चढ़ाई चालू हुई, हमे भारतीय सेना की चेकपोस्ट
मिली, ये थी गुमरी चेकपोस्ट l मैं सबसे आगे चल रहा था, मैंने मेरी बाइक के शीशे
मे देखा तो विक्रांत और सत्या एक जवान से
बात कर रहे थे और मुझे बुलाने का इशारा कर रहे थे l जब मैं वहाँ पहुँचा तो उस जवान ने बताया की
वो अलवर का है और चूँकि मेरा गृहनगर भी अलवर है तो उसने मुझे मिलने बुला लिया l जवान ने हमे चाय पिलाई
और गुमरी के बारे मे बताया की गुमरी भारत की सबसे ठंडी जगहों मे से एक है l जवान ने हमे बताया की जोजिला
पर एक जगह पहुँच कर दो रास्ते जाते हुए दिखाई देंगे तो हमे बाई ओर जाने वाले रास्ते
पर बढना होगा l
गुमरी
पर लगभग आधा-पौना घंटा बिताने के बाद हम सोनमर्ग की ओर रवाना हो गए l शाम के करीबन साढ़े छ
बज चुके थे, अँधेरा होने लग गया था और सर्दी बढ़ने लगी थी l कुछ और आगे चढ़ने पर
बिलकुल ही अँधेरा हो गया और हम बहुत धीरे धीरे जोजिला चढ़ने लगे l अँधेरा होने की वजह से
अब हमे कुछ भी नही दिखाई दे रहा था, सड़क बहुत सकड़ी हो गयी थी और कई जगह हल्का
हल्का पानी बहने की वजह से फिसलन भी हो गयी थी l जब मैं सड़क के बिलकुल बाई ओर चल रहा था तब
सत्या ने मुझे बाई ओर देखने का इशारा किया तो मैंने देखा की बाई ओर बिलकुल खडी और गहरी
खायी थी l इसे देख कर महसूस हुआ की आज तो गलती की कोई भी गुंजाईश नही है l इसके बाद हम सबने
हमारी बाइक दाईं ओर ही रखने की कोशिश की l कहीं भी दूर दूर तक एक भी गाडी नही दिखाई दे
रही थी और चारों ओर घूप अँधेरे मे बस हमारी तीन हेडलाइट जल रही थी l डर और रोमाँच की मिलीजुली भावना के साथ काफी देर तक हम इस उबड़ खाबड़ पास पर
चढ़ते रहे l
अचानक
ही दूर बहुत ऊपर हमे दो हेडलाइट दिखी तो हम ठिठक गए l ये कोई ट्रक या बड़ी
गाडी थी लेकिन ये बहुत दूर और बहुत ही ऊँचाई पर थी, जिसको देख कर हम पूरी तरह भ्रमित
हो गए l हम तीनों वहाँ रुक गए और पर किसी के कुछ भी समझ नही आया l क्या हमे अभी इतना ऊपर और जाना है ? हमे कुछ भी समझ
नही आ रहा था परन्तु हमारे पास चलते रहने की सिवा और कोई विकल्प भी नही था l कुछ देर चलने के बाद हमे
सड़क पर कुछ दुरी पर दो बाइकर खड़े हुए दिखने लगे l जल्द ही हम वहाँ पहुँच गए और समझ गए की क्या
माजरा है l ये वह जगह थी जिसके बारे मे हमे उस जवान ने बताया था, इस जगह से दो सड़क कट
रही थी, एक बाई ओर और दूसरी दाई ओर l उन्होंने हम से इसके
बारे मे पूछा तो हमने उन्हें सेना के जवान के बारे मे बताया और फिर जैसा की जवान ने हमे
बताया था हम सब बाई ओर की सड़क पर मुड गए l कभी कभी सोचता हूँ की अगर हमे वो जवान नही
मिलता और हम दाई ओर चले जाते तो क्या होता ? शायद वो ऊँचाई पर दिखने वाला ट्रक दाई
ओर की सड़क पर ही हो l
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