Bike Trip To Leh Ladakh | लेह लद्दाख़ यात्रा - 17 सितम्बर - नुब्रा वैली से लेह वाया खारदुन्गला पास
लेह लद्दाख़ यात्रा 2017 - 17 सितम्बर - नुब्रा वैली से लेह वाया खारदुन्गला पास
सुबह लगभग साढ़े छ के आस पास उठे, हाथ-मुहँ धोये और चाय पी और उसके बाद कुछ देर रिसोर्ट का भ्रमण किया, फ़ोटोज़ लिए l रिसोर्ट काफी बड़ा और अच्छा था l हमने निश्चय किया कि नाश्ता करते ही जल्दी से जल्दी निकल जाएँगे l आज का दिन बहुत रोमाँचकारी होने वाला था क्योंकि आज हमे खारदुन्गला पास पार करना था l इस पास के बारे मे कहा जाता है कि ये दुनिया का सबसे ऊँचा पास है हालाँकि इस बात के ऊपर भी कुछ विवाद है l खैर, हमे विवादों से क्या लेना देना था, हमारे लिए तो बस ये एक और नयी घुमने की जगह थी l तैयार हो कर हम सबने नाश्ता किया जो कि काफी स्वादिस्ट था और नाश्ते मे काफी विकल्प थे l नाश्ता करते हुए हमने तय किया कि पहले दिस्कित मोनेस्ट्री जाएँगे और चूँकि नुब्रा वैली से लेह की दुरी लगभग 160 किलोमीटर ही थी तो विक्रांत ने सुझाव दिया की क्यों ना पनामिक तक भी हो आया जाए l हंडर से पनामिक की दुरी थी लगभग 60 किलोमीटर, जो की कुछ ज्यादा नही थी l पनामिक मे पहाड़ से प्राकृतिक रूप से गर्म पानी निकालता है जिसमे कई तरह के लवण होते है और कहते है कि इस पानी से नहाने से शरीर को बहुत फायदा होता है l विक्रांत का सुझाव अच्छा था और हमने सोचा की जाने फिर कब यहाँ आने का मौका मिले इसीलिए हमने पनामिक भी जाने का फैसला भी कर लिया l
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योजना के अनुसार हम सब रिसोर्ट से निकल कर दिस्कित मोनेस्ट्री पहुँचे l दिस्कित मोनेस्ट्री काफी बड़ी और पुरानी है l ये काफी ऊँचाई पर स्थित है और यहाँ पर मैत्रेय बुद्ध की लगभग 32 मीटर ऊँची बहुत ही खुबसूरत और रंगीन मूर्ति है जो की काफी दुरी से भी देखी जा सकती है l इस मोनेस्ट्री को देखने के लिए टिकट लेना पड़ता है l ये मोनेस्ट्री चारों ओर से पहाड़ों से घिरी हुई है l मैत्रेय बुद्ध जिस ओर देख रहे है उस ओर दूर तक फैला हुआ मैदान है और फिर ऊँचे ऊँचे पहाड़ है l इस मैदान मे कई तरह के रंग बिखरे हुए से लगते है l जब आसमान से बादलों की आवाजाही होती है तब यहाँ से चारों ओर का दृश्य बहुत ही शानदार दिखाई पड़ता है l हम करीबन पौना घंटा दिस्कित मोनेस्ट्री मे घुमने फिरने के बाद वहाँ से पनामिक की लिए निकल गए l
योजना के अनुसार हम सब रिसोर्ट से निकल कर दिस्कित मोनेस्ट्री पहुँचे l दिस्कित मोनेस्ट्री काफी बड़ी और पुरानी है l ये काफी ऊँचाई पर स्थित है और यहाँ पर मैत्रेय बुद्ध की लगभग 32 मीटर ऊँची बहुत ही खुबसूरत और रंगीन मूर्ति है जो की काफी दुरी से भी देखी जा सकती है l इस मोनेस्ट्री को देखने के लिए टिकट लेना पड़ता है l ये मोनेस्ट्री चारों ओर से पहाड़ों से घिरी हुई है l मैत्रेय बुद्ध जिस ओर देख रहे है उस ओर दूर तक फैला हुआ मैदान है और फिर ऊँचे ऊँचे पहाड़ है l इस मैदान मे कई तरह के रंग बिखरे हुए से लगते है l जब आसमान से बादलों की आवाजाही होती है तब यहाँ से चारों ओर का दृश्य बहुत ही शानदार दिखाई पड़ता है l हम करीबन पौना घंटा दिस्कित मोनेस्ट्री मे घुमने फिरने के बाद वहाँ से पनामिक की लिए निकल गए l
दिस्कित
से पनामिक का रास्ता बहुत अच्छा था, एक-आध जगह को छोड़कर लगभग पूरा ही रास्ता काफी
अच्छी हालत में था l दो-तीन छोटे छोटे खुबसूरत गाँवों से निकलते हुए हम जल्द ही पनामिक पहुँच गए l जहाँ पर वो गर्म पानी निकल रहा था
वहाँ एक पुरानी सी इमारत थी, पता नही वो सरकारी थी या निजी l उस इमारत पुरुष और महिला
के नहाने के लिए अलग अलग कक्ष थे और उस कक्ष मे पाइप के जरिये पहाड़ से निकलने
वाले गर्म पानी को एक बड़े कुंड मे पहुँचाया जाता है l पानी बहुत गर्म होता है
इसीलिए उस कुंड मे ठंडा पानी का भी पाइप लगा होता है जिससे कुंड के पानी का तापमान
नहाने योग्य रहे l पता नही मेरी क्यों इच्छा नही हुई परन्तु सत्या और विक्रांत
दोनों ने उस जादुई पानी से नहाने का मज़ा लिया l वहाँ पर एक छोटा सा रेस्टोरेंट भी
था, वहाँ हमने कॉफ़ी और गर्मा-गर्म मोमोज़ का आनंद उठाया l कुछ देर हमने ये अवलोकन करने मे बिताया कि ये पानी कहाँ से आता है, हमने देखा की एक पहाड़ मे कुछ ऊँचाई पर 2-3 छेद थे
और उसी मे से गर्म पानी निकल रहा था l गर्म पानी निकलने की वजह से छेदों के आस-पास काफी धुआँ उठ रहा था और
इतनी ठण्ड होने के बावजूद हम उस जगह गर्माहट महसूस कर सकते थे l पनामिक मे हमे दो और बाइकर मिले जो की कर्नाटक के थे, हम सब ने अपने अपने अनुभव साझा किये l कई बार दिल मे विचार आता है कि लद्दाख़ के आकर्षण मे लोग कितनी दूर दूर से बाइक लेकर इस जगह को घुमने आते है l लगभग डेढ़-दो घंटे
पनामिक मे बिताने के बाद हम सब लेह की ओर रवाना हो गए l
जिस
रास्ते से हम पनामिक आये थे उसी रास्ते पर वापिस निकल गए l आज हमे लेह पहुँचना था
वो भी खादुन्गला पास होते हुए इसीलिए हमारा उत्साह चरम पर था l खारदुन्गला पास के
दोनों ओर चेक-पोस्ट है, जिन्हें नार्थ पुल्लू और साउथ पुल्लू कहा जाता है l साउथ
पुल्लू लेह की तरफ है और नार्थ पुल्लू नुब्रा वैली की तरफ l हम पनामिक से निकल कर
नार्थ पुल्लू की ओर बढ़ रहे थे l नार्थ पुल्लू पहुँचने पर चेक-पोस्ट पर एंट्री करवाई और फिर खारदुन्गला
की ओर रवाना हो गए l कुछ देर चलने के बाद पक्की सड़क पूरी तरह से गायब हो गयी और उसकी जगह कच्ची
सड़क ने ले ली l अब हम खारदुन्गला की ओर बढ़ने लग गए l सड़क बहुत खराब थी इसीलिए हमे
खारदुन्गला चढ़ने मे समय लग रहा था l
जैसे
जैसे खारदुन्गला पास आता जा रहा था, सर्दी बढती जा रही थी l आखिर, लगभग दोपहर के तीन
बजे के आस-पास हम खारदुन्गला पास पहुँच गए l वहाँ पर एक बहुत बड़ा माइलस्टोन लगा हुआ था और
एक बड़ा सा बोर्ड, दोनों पर लिखा हुआ था कि ये संसार सबसे ऊँची सड़क है l हमे वहाँ पहुँच कर बहुत ख़ुशी
हुई और लगा कि जैसे हमने भी कुछ प्राप्त कर लिया है l सत्या ने सिद्ध कर दिया था कि अगर बुलंद इरादे हो तो कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है l उसने सोचा था की वो अपनी हौंडा शाइन को दुनिया की सबसे ऊँची सड़क पर ले जाएगा और उसने वो कर दिखाया l खारदुन्गला पास पर काफी चहल-पहल थी, लोग
आ रहे थे, फोटो खिचवा रहे थे और रवाना हो रहे थे l कोई भी व्यक्ति वहाँ पर ज्यादा
देर नही रुक रहा था l कुछ लोग तो ऑक्सीजन के पोर्टेबल सिलिंडर भी साथ लाये थे और बीच
बीच मे उसमे से साँस ले रहे थे l पता नही क्यों, पर हम तीनों को इस सब से ज्यादा
फर्क नही पड़ रहा था और हम अपनी ही मस्ती मे मस्त थे l हमने बिना किसी फ़िक्र के बहुत आराम से खारदुन्गला
का अवलोकन किया और फ़ोटोज़ लिए l खारदुन्गला पास पर हमने लगभग पौना घंटा बिताया
और फिर हम साउथ पुल्लू की ओर रवाना हो गए l
साउथ
पुल्लू की ओर जाने वाली सड़क भी कच्ची और बुरी हालत मे थी l हम हमारी बाइक की रफ़्तार ज्यादा
नही बढ़ा पा रहे थे l साउथ
पुल्लू से निकलने के बाद कुछ देर मे पक्की सड़क आ गयी और हमने रफ़्तार बढ़ा ली l कुछ देर बाद हमे पहाड़ से उतरते हुए दूर बसा हुआ लेह दिखने लग गया था l रास्ते मे एक स्थान
पर हम रुक गए क्योंकि ये स्थान कुछ ऊँचाई पर था और यहाँ से पूरा लेह दिख रहा था l
चारों ओर भूरे भूरे पहाड़ों के बीच बसा हुआ लेह शहर l दूर तक देखने पर अगर कहीं हरियाली दिखती है
तो बस लेह मे, बहुत ही अलग वातावरण है लद्दाख का l
जल्द
ही हम लेह मे प्रवेश कर गये और सीधे अपने होटल पहुँचे l शाम के करीब छ बज गए थे l
होटल वाले भाई साहब ने हमारा सामान संभाल रखा था और इसके लिए हमने उनका शुक्रिया अदा किया l होटल पहुँच कर अच्छी तरह नहाए क्योंकि दो दिनों पहले हम यहीं से नहा कर
निकले थे पंगोंग के लिए और उसके बाद हमे नहाने का मौका नही मिला था l विक्रांत और
सत्या हालाँकि पनामिक मे आज सुबह नहा लिए थे पर फिर भी हमे अच्छी तरह से नहाये हुए
तीन दिन हो चुके थे l लेह का मुख्य बाज़ार होटल के बिलकुल करीब ही था तो नहा-धो कर हम पैदल पैदल ही लेह का बाज़ार घुमने निकल गए l कुछ देर घुमने के बाद लेह
के बाज़ार मे एक बढ़िया रेस्टोरेंट मे हमने शानदार पार्टी की और हमारी यात्रा की सफलता
का आनंद उठाया l हम बहुत खुश थे क्योंकि हम लद्दाख की यात्रा पर पहली बार आये थे
और हमने लद्दाख की यात्रा बिना किसी परेशानी के पूर्ण कर ली थी l
रिसोर्ट काफी बड़ा था |
नुब्रा वैली |
नुब्रा वैली |
बादल पानी मे |
नुब्रा वैली |
नुब्रा वैली |
नुब्रा वैली |
मैत्रये बुद्ध की मूर्ति |
दिस्कित मोनेस्ट्री |
दिस्कित मोनेस्ट्री से दृश्य |
बादलों के आवाजाही से दृश्य पल पल बदलता है |
मैत्रये बुद्ध |
दिस्कित मोनेस्ट्री से दृश्य |
खारदुन्गला चढ़ते हुए |
खारदुन्गला चढ़ते हुए |
विक्रांत @ खारदुन्गला |
लवनीश @ खारदुन्गला |
हम तीन @ खारदुन्गला |
लेह |
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