Bike Trip To Leh Ladakh | लेह लद्दाख़ यात्रा - 13 सितम्बर - पांग से लेह
लेह लद्दाख़ यात्रा 2017 - 13 सितम्बर - पांग से लेह
कैसे-तैसे रात कटी और सुबह हुई l हाथ-मुहँ धो कर चाय पी, कपडे बदले, नहाने का तो सवाल ही नही था क्योंकि वहाँ पर ठण्ड का आलम ये था की ढ़ाबे के बाहर रखा हुआ पानी बर्फ मे तब्दील हो चूका था l सुबह होते ही सबसे पहले विचार आया क्या आज मैं लेह पहुँच पाउँगा या नही क्योंकि मेरी बाइक का कुलेंट बॉक्स बिलकुल खाली हो चूका था l मैंने विचार किया कि हो सकता है किसी और के भी पास मेरी वाली बाइक हो, इस उम्मीद मे मैंने सभी ढ़ाबों का निरिक्षण किया पर मेरी बाइक किसी के पास नही थी l मुझे नही मालुम था कि ये कौनसा कुलेंट है और क्या मैं कोई दूसरा कुलेंट डाल सकता हूँ? फ़ोन की कोई व्यवस्था थी नहीं जो मैं किसी से पूछ पाता l कुछ दुसरे बाइकर से मैंने बात की पर कोई भी अतिरिक्त कुलेंट नही ले कर चल रहा था और उनको भी मेरी बाइक के बारे मे कुछ ज्यादा पता नही था l मुझे बहुत बुरा लग रहा था क्योंकि अभी तो हमारी लेह यात्रा शुरू ही हुई थी और अब तक हम लेह भी नही पहुँचे थे l हम तीनो ने इस यात्रा से पहले ये योजना बनायीं थी कि अगर किसी की बाइक मे कुछ भी हो जाता है और अगर बाइक सही नही हो पाती है तो उस कारण से हम हमारी इस यात्रा को स्थगित नही करेंगे l अब हमे ये निर्णय लेना था कि मुझे लेह की तरफ बाइक चला कर जाना है या मनाली की तरफ किसी ट्रक मे बाइक लोड करवा कर l
हमारी इस लेह लद्दाख़ यात्रा को आरम्भ से पढने के लिए
यहाँ क्लिक करें
पांग से लेह लगभग 175 किलोमीटर है और रास्ते मे तंगलांग-ला पास भी पड़ने वाला था जो कि दुसरा सबसे ऊँचा पास था l कल की यात्रा, जो की हमने केलोंग से पांग की थी, बहुत कठिन थी और मुझे समझ नही आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए ? बाइक अब कैसे पेश आएगी इसको लेकर हम पूरी तरह से अनभिज्ञ थे l ऐसे मे हम तीनों ने नाश्ता करते हुए ये निर्णय लिया की मुझे लेह की तरफ ही चलना चाहिए और अगर कुछ होगा तो देखा जाएगा l हमारे पास पूरा दिन पड़ा था और अगर कुछ बुरा भी हुआ तो दिन मे कुछ न कुछ सहायता तो मिल ही जाती l विक्रांत और सत्या के साथ साथ मैं भी अनिश्चित था पर हम तीनों को कहीं ना कहीं दिल मे ये विश्वास था की मैं लेह तो कैसे तैसे पहुँच ही जाऊँगा और वहाँ पहुँच कर मेरी बाइक को दिखवा लूँगा l सत्या ने इस कुलेंट की घटना के बाद मेरी बाइक की खूब खिल्ली उडाई और मुझसे कहा की मुझे ये बेच देनी चाहिए l
पांग से लेह लगभग 175 किलोमीटर है और रास्ते मे तंगलांग-ला पास भी पड़ने वाला था जो कि दुसरा सबसे ऊँचा पास था l कल की यात्रा, जो की हमने केलोंग से पांग की थी, बहुत कठिन थी और मुझे समझ नही आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए ? बाइक अब कैसे पेश आएगी इसको लेकर हम पूरी तरह से अनभिज्ञ थे l ऐसे मे हम तीनों ने नाश्ता करते हुए ये निर्णय लिया की मुझे लेह की तरफ ही चलना चाहिए और अगर कुछ होगा तो देखा जाएगा l हमारे पास पूरा दिन पड़ा था और अगर कुछ बुरा भी हुआ तो दिन मे कुछ न कुछ सहायता तो मिल ही जाती l विक्रांत और सत्या के साथ साथ मैं भी अनिश्चित था पर हम तीनों को कहीं ना कहीं दिल मे ये विश्वास था की मैं लेह तो कैसे तैसे पहुँच ही जाऊँगा और वहाँ पहुँच कर मेरी बाइक को दिखवा लूँगा l सत्या ने इस कुलेंट की घटना के बाद मेरी बाइक की खूब खिल्ली उडाई और मुझसे कहा की मुझे ये बेच देनी चाहिए l
पूरी रात की जबरदस्त
ठण्ड के बाद सुबह के मीठी धुप मे नाश्ता करके मज़ा आ गया l आंटी ने बताया कि अब लेह
तक सड़क काफी अच्छी हालत मे है जो की हमारे लिए बहुत अच्छी खबर थी l आंटी के साथ कुछ
तस्वीरें खीचने और उनको धन्यवाद देने के बाद हम सुबह लगभग आठ बजे लेह की तरफ रवाना
हुए l
पांग से कुछ दूर निकलते ही मूरे प्लेन चालू हो जाता है l मूरे प्लेन लगभग 40 किलोमीटर लम्बा है और 15,748 फीट की ऊँचाई पर इतनी लंबी सीधी मैदानी सड़क होना कौतुहल
पैदा करता है l मनाली – लेह हाईवे पर ये सबसे अच्छा और सीधा रास्ता है जिस पर
गाडी चलाने मे हर व्यक्ति को आनंद आता है l यहाँ पर आप अपनी गाडी को
उसकी अधितम रफ़्तार पर चला सकते है l मूरे प्लेन पर बाइक चलाना बहुत ही खुशनुमा
अनुभव था क्योंकि ये दूर तक फैला हुआ मैदानी इलाका है, इस मैदानी इलाके के बिलकुल
बीच मे बेहद अच्छी सड़क, चारों और पहाड़ है और ऊपर बिलकुल साफ़ नीला आकाश l सड़क के
बिलकुल सामने दूर दिखने वाले छोटे छोटे पहाड़ ऐसा एहसास कराते है जैसे की आप की
यात्रा की मंजिल यही पहाड़ है और ये यात्रा इन पहाड़ों मे ही जा कर ख़त्म होगी l हम
तीनो ने भी मूरे प्लेन का भरपूर आनंद उठाया और खूब तस्वीरें भी ली l
मूरे प्लेन के समाप्त होते ही तंगलांग-ला पास की चढ़ाई चालू हो जाती है l तंगलांग-ला पास की ऊँचाई
लगभग 17,480 फीट है और कहा जाता है कि ये दुनिया का दूसरा सबसे ऊँचा पास है l
तंगलांग-ला की चढ़ाई चालू होते ही मुझे ये फ़िक्र होने लग गयी की अब मेरी बाइक कैसे
पेश आएगी l ये ख़ुशी की बात थी कि सड़क काफी अच्छी थी क्योंकि जब सड़क ख़राब हालत मे
होती है तो बार बार क्लच-गीयर का उपयोग होने से इंजन जल्दी गर्म होता है l बाइक
चलाते हुए बीच बीच मे मैं कुलेंट बॉक्स पर नज़र मार लिया करता था l जैसे ही हम
लगभग पास के पास पहुँचे तो मुझे कुलेंट बॉक्स मे कुलेंट दिखाई दिया l “कुलेंट बॉक्स
मे कुलेंट कहाँ से आया” ? इसका मतलब था की इंजन जब बहुत गर्म होता था तो कुलेंट फैलता
था और हो सकता है की कुलेंट बॉक्स मे से ओवरफ्लो हो कर वो बाहर निकल गया हो l
अब मुझे ये लगने लगा था की कुलेंट का निकलना शायद बाइक मे किसी खराबी का संकेत
नही था l इस सोच ने मेरा तनाव काफी हद तक कम कर दिया और मैं अब मेरी यात्रा का और
अधिक आनंद उठा पा रहा था l
कुछ ही देर बाद
हम सब तंगलांग-ला पास पर थे l इस पास पर पहली चीज़ जिस पर आपका ध्यान जाता है, वो
है, इस पास के चारों ओर के नज़ारे l इस पास पर भी अन्य पास के तरह चारों ओर बुद्धिश
प्रार्थना झंडे लगे हुए थे l बुद्धिश प्रार्थना झंडे मे पाँच अलग-अलग रंग के झंडे
होते है जो कि पाँच तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं, नीला - आकाश का, सफ़ेद -
वायु का, लाल – अग्नि का, हरा – जल का, पीला – धरती का l हर झंडे पर संस्कृत मे
मंत्र और सूत्र लिखे होते है और कहा जाता है कि हवाओं के माध्यम से ये झंडे सकारात्मक
आध्यात्मिक वातावरण दूर तक फैलाते है l हम इस पास पर पहुँच कर बहुत खुश हुए और
फटाफट कुछ तस्वीरें ली l विक्रांत और सत्या ने ख़ुशी मे वहाँ नृत्य किया l कुछ देर
वहाँ बिताने के बाद हम तंगलांग-ला पास से नीचे उतरना चालू किया l अगला गाँव जो की
हमने पार किया वो था रुम्त्से l रुम्त्से पार करते ही हमे कुछ कुछ हरियाली दिखाई
देने लग गयी l सड़कें अब पूरी तरह से अच्छी स्तिथि में आ चुकी थी और अब ऐसा महसूस
हो रहा था की जैसे हम मैदानी इलाके मे ही बाइक चला रहे हैं l अब हमे थोड़ी-थोड़ी भूख
लगने लगी थी पर हमने सोचा की हम दोपहर का खाना उपशी ही खाएँगे जो की रुम्त्से से
ज्यादा दूर नही था l
आगे बढ़ते हुए अब
काफी आनंद आ रहा था क्योंकि रास्ते की लगभग सभी कठिन बाधाएं हमने अच्छी तरह से पार कर ली
थी l कुछ देर बाद हम एक तेज़ वेग से बहती हुई नदी पर पहुँचे l ये नदी थी इंडस नदी
और इस नदी के ऊपर बड़ा पुल बना हुआ था l इस पुल को पार करते ही हम उपशी पहुँच गए l उपशी
से लेह की दुरी मात्र 48 किलोमीटर के आस पास रह गयी थी और ये देख कर हमे और जोश आ रहा था
l उपशी से कुछ आगे हमे एक सही ढाबा दिखा तो हम वहाँ खाना खाने रुक गए l हमने वहाँ
पर राजमा-चावल, रोटी और सब्जी खायी l उस ढ़ाबे पर हमारी ही तरह काफी और लोग भी थे
जो की बाइक के द्वारा लेह जा रहे थे l इसी ढ़ाबे पर हमे एक बाइकर मिले जिनसे मिलकर
हमे लगा की हम क्या घूम रहे है,असल मे घूम तो ये रहे है l वो भाई साहब लगभग डेढ़
महीने से भी ज्यादा समय से लदाख घूम रहे थे l उनके पास लदाख का एक विस्तृत नक्शा
था जिसमे काफी छोटी- छोटी और सकड़ी सड़कें भी थी l उन्होंने बहुत ही सावधानी से अपना
यात्रा का कार्यकर्म बनाया था जिसमे उन्होंने लदाख की लगभग सभी सड़कें घूम ली थी l
उन्होंने ने ही हमे ये बताया था की अगर तुम्हे पंगोंग से नुब्रा वैली जाना हो तो
तुम वाया आगम जाना क्योंकि अभी वो रास्ता खुला हुआ है l हमने उन भाई साहब से काफी
देर बात की, खाना खाया और फिर हम वहाँ से लेह के लिए निकल गए l
जल्द ही हम कारू
पहुँच गए और कारू से लेह की दुरी मात्र 32 किलोमीटर थी l कारू से निकलते ही हमे पेट्रोल
पंप दिखाई दिया तो हमे तांडी के पेट्रोल पंप का वो बोर्ड याद आ गया जिस पर लिखा
हुआ था की अगला पेट्रोल पंप 365 किलोमीटर दूर है l लेह के पास आते ही वाहनों की आवाजाही
बढ़ गयी थी जो हमे ये एहसास दिला रही थी कि अब हम लेह के बहुत करीब है l लेह
पहुँचने से कुछ देर पहले ही हमे एक पहाड़ पर बनी काफी बड़ी सफ़ेद इमारत दिखाई दी l ये
थी थिकसे मोनिस्ट्री, जो की थिकसे गाँव के एक ऊँचे पहाड़ बनी हुई थी l यहाँ पर हम
कुछ देर रुके और कुछ तस्वीरें ली l लेह आने से पहले हमे रास्ते मे और भी छोटे छोटे
गाँव दिखाई दिए l सबसे अच्छी बात ये थी की अब हमे काफी हरियाली देखने को मिल रही
थी l शाम के लगभग 5 बजे के आस पास हमने लेह शहर मे प्रवेश किया l हमे बहुत ही
प्रसन्नता हो रही था क्योंकि मनाली से लेह की ये यात्रा बहुत ही खुबसूरत,
रोमांचक, यादगार और शानदार अनुभव रही थी l आखिर सत्या की हौंडा शाईन भी हर कठिनाई
को पार करके लेह पहुँच ही गयी थी और इसी के साथ उसने एक पड़ाव तो पार कर ही लिया था
जो कि उसे ये विश्वास दिला रहा था कि वो अपनी बाइक को दुनिया की सबसे ऊँची सड़क पर
जरुर ले कर जाएगा l
लेह शहर के मुख्य
द्वार से होते हुए हम शहर के बीचो-बीच पहुँच गए l हमने होटल बुक नही करवाया
हुआ था इसीलिए हम एक जगह रुक कर ये सोच रहे थे कि कैसे अच्छा सा होटल ढूंढा जाए
इतने मे ही एक मोटे से अंकल अपनी एक्टिवा पर आये और उन्होंने हमे अपने होटल पर
चलने को कहा l हम तीनों काफी थके हुए थे और अंकल मार्केटिंग मे बहुत ही अभ्यस्त
मालुम पड़ते थे सो उन्होंने हमे जल्दी ही अपने साथ चलने को राज़ी कर लिया l कुछ छोटी
गलियों से होते हुए हम उनके होटल पहुँचे जो की होटल कम और एक होम-स्टे ज्यादा था l
हमे अंकल ने सबसे बड़ा कमरा दिया, ये कमरा वाकई काफी बड़ा था लगभग 15X20 फीट का, उस
कमरे के साथ लगता हुआ बाथरूम भी था l उस होम-स्टे मे एक काफी बड़ा बगीचा भी था
जिसमे 2-3 सेव के पेड़ भी लगे हुए थे l उन सेव के पेड़ों पर खूब सारे लाल लाल सेव
लगे हुए थे l शुरू मे तो हम ये सब देख कर खुश हुए पर जल्द ही हमारी ख़ुशी काफूर हो
गयी क्योंकि अंकल एक भी वादा पूरा नही कर पा रहे थे l हमने उनसे कहा था की हमे
WIFI जरूर चाहिए क्योंकि केलोंग के बाद हम तीनों के फ़ोन बंद थे और इन्टरनेट के
द्वारा ही अब हम अपने घर बात कर सकते थे l बाथरूम मे गर्म पानी भी नही था, चाय की
बोलने पर उनका नौकर दूध लेने बाज़ार चल पड़ा l
WIFI काम ही नही
कर रहा था और हमे अपने घरों पर बात करनी ही थी क्योंकि हमे मालुम था की हमारे घर
वाले हमे पिछले 2-3 दिनों से फ़ोन कर रहे होंगे और गुस्से से उबल रहे होंगे l हमने
अंकल पर दबाव बनाया तो उन्होंने अपना फ़ोन हमे बात करने के लिए दे दिया l खैर, हम
तीनों ने एक के बाद एक अपने अपने घरों पर बात की l विक्रांत और सत्या तो आसानी ने
निपट गए क्योंकि वो लेह की बोल कर आये थे पर मुझे अपनी बीवी को ये समझाने मे बहुत समय
लगा की मैं तो मनाली तक ही आया था और लेह तक कैसे पहुँच गया l अपने घर पर बात करने
के बाद मैंने पता किया तो पता चला की लेह मे बजाज का कोई भी सर्विस सेंटर नही है
l मुझे अपनी बाइक की कुलेंट की समस्या को सही करना था क्योंकि अभी तो हमे लदाख मे
कई जगह घूमना था l मैंने बजाज के जयपुर स्थित सर्विस सेंटर पर बात की तो उन्होंने
मुझे बताया की अगर बजाज का कुलेंट ना मिले तो मैं कोई दूसरी कंपनी का हरे रंग वाला
कुलेंट डाल सकता हूँ l चाय पीते हुए हमने ये योजना बनायीं की मेरी बाइक को अगले
दिन सही करवाएंगे और साथ ही साथ कोई दूसरा होटल भी तलाशेंगे l
चाय
पीने के बाद हम तीनों नहा-धो कर पैदल ही घुमने निकल गए l इतने दिनों लगातार बाइक
चलाने के बाद पैदल घुमने मे काफी आनंद आ रहा था l अंकल जी से परेशान होकर हम अच्छा
सा होटल ढूंढने लग गए और हमे एक होटल मिल गया l इस होटल का नाम था होटल कोजी कोर्नर, इसकी लोकेशन भी अच्छी थी और
कमरा पूर्ण सुविधाओं युक्त था l हमने कुछ रुपए दे कर कमरा बुक कर लिया और होटल
वाले भाई साहब ने हमे ये आश्वाशन दिया कि हम अगले दिन से उस होटल मे रह सकते है l होटल बुक
करने के पश्चात हम लेह शहर को देखने निकल पड़े l लेह शहर मे काफी रौनक थी क्योंकि ये
एक पर्यटक सीजन था l काफी संख्या मे पर्यटक घूम रहे थे और बहुत सारे बाइकर देश के
अलग अलग हिस्सों से यहाँ पहुंचे थे l हम भी काफी देर तक शहर मे घुमे और फिर जम कर हमारी कामयाबी का जश्न मनाया l पार्टी के बाद चहलकदमी करते हुए हम हमारे होम-स्टे पहुँचे l अगला दिन
हमे लेह मे ही बिताना था सो हम काफी देर तक बात करते रहे और फिर हमे कब नींद आ गयी
पता ही नही चला l
![]() |
पांग मे सुबह |
![]() |
मुरे प्लेन |
![]() |
सत्या और विक्रांत का फ़ोटो शूट |
![]() |
दूर दूर तक कोई नही है |
![]() |
तंगलांग-ला पास |
![]() |
हम तीनों तंगलांग-ला पर |
![]() |
तंगलांग-ला |
![]() |
तंगलांग-ला |
![]() |
हम तीनों की बाइक्स |
![]() |
"जिन्दगी कैसी है पहली हाय..." गाते हुए सत्या |
![]() |
विक्रांत अपनी अवेंजेर पर |
![]() |
यहाँ हम खाना खाने रुके थे |
![]() |
लेह की ओर |
![]() |
आकाश, पहाड़ और नदी |
![]() |
सत्या मुझे और विक्रांत को बुला रहा है |
![]() |
मस्त नदी |
![]() |
लेह की ओर |
![]() |
पहाड़ों का विचित्र रंग |
![]() |
अब दिखी इतनी हरियाली |
![]() |
लेह की ओर |
![]() |
इंडस नदी |
![]() |
लेह की ओर |
![]() |
लेह की ओर |
![]() |
लेह की ओर |
![]() |
थिकसे मोनेस्ट्री |
1. लेह लद्दाख़ यात्रा - प्रस्तावना
2. लेह लद्दाख़ यात्रा - जयपुर से चंडीगढ़
3. लेह लद्दाख़ यात्रा - चंडीगढ़ से मनाली
4. लेह लद्दाख़ यात्रा - मनाली से केलोंग
5. लेह लद्दाख़ यात्रा - केलोंग से पांग
6. लेह लद्दाख़ यात्रा - पांग से लेह
7. लेह लद्दाख़ यात्रा - लेह, संगम, गुरुद्वारा श्री पत्थर साहिब और मेग्नेटिक हिल
8. लेह लद्दाख़ यात्रा - लेह से पंगोंग लेक
9. लेह लद्दाख़ यात्रा - पंगोंग लेक से नुब्रा वैली
10. लेह लद्दाख़ यात्रा - नुब्रा वैली से लेह वाया खारदुन्गला पास
11. लेह लद्दाख़ यात्रा - लेह शहर
12. लेह लद्दाख़ यात्रा - लेह से सोनमर्ग
13. लेह लद्दाख़ यात्रा - सोनमर्ग से जम्मू
14. लेह लद्दाख़ यात्रा - जम्मू से चंडीगढ़
15. लेह लद्दाख़ यात्रा - चंडीगढ़ से जयपुर
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
Popular Posts
-
स्पिति वैली यात्रा - 01 जून 2019 - चंडीगढ़ से नारकंडा रात को नींद बहुत अच्छी आई और सुबह लगभग छ बजे के आस पास हम उठ गए l चाय पी और फ...
-
कई बार हम हमारे जीवन मे कुछ निर्णय अनायास ही ले लेते है जिसका कि हमारे जीवन के ऊपर बहुत प्रभाव पड़ता है, ऐसा ही एक निर्णय था हमारी “लेह-लद...
No comments :
Post a Comment