Bike Trip To Leh Ladakh | लेह लद्दाख़ यात्रा - 16 सितम्बर - पंगोंग लेक से नुब्रा वैली
लेह लद्दाख़ यात्रा 2017 - 16 सितम्बर - पंगोंग लेक से नुब्रा वैली
सुबह करीबन सात बजे मेरी आँख खुली, जब तक विक्रांत और सत्या उठ चुके थे और वो टेंट से बाहर झील के किनारे जा चुके थे, पता नहीं मुझे इतनी जबरदस्त नींद कैसे आयी l मैं भी मुँह-हाथ धो कर विक्रांत और सत्या के पास झील किनारे पहुँचा l कहते हैं कि पंगोंग झील पर सूर्योदय देखना अगल ही अनुभव है परन्तु ये अनुभव मैं नहीं ले पाया, विक्रांत और सत्या ने इसका अनुभव लिया l खैर, कुछ देर और पंगोंग झील के किनारे बिताने के बाद हमने चाय, काफी पी और दुबारा टेंट मे आकर निकलने की तैयारी की l आज हमे दुबारा लेह जाना था l लगभग नौ बजे के आस पास नाश्ता लग गया था तो हम सभी नाश्ता करने पहुँचे l वहाँ पर कुछ दुसरे बाईकर भी रुके हुए थे जिनसे अनायास ही बातें चल पड़ी l उन्होंने हमसे बोला कि लेह जाने की बजाय हम लोग सीधे नुब्रा वैली जा सकते है वाया आगम l ये रास्ता हमेशा खुला हुआ नही रहता है और वो सभी उसी रास्ते से नुब्रा से पंगोंग आये थे l उन्होंने बताया कि रास्ते के कई हिस्से खराब है पर फिर भी रास्ता ठीक ही है l अब हम तीनों ने नाश्ता करते करते ये वार्तालाप किया की क्या किया जाए तो निष्कर्ष ये निकला कि हमे लेह जाने की बजाय सीधे नुब्रा जाना चाहिए l इसके अनेक फायदे थे, पहला हमे बिलकुल नया रास्ता देखने को मिलता, दूसरा हमारा एक दिन बचता और तीसरा चांगला भी दुबारा नही चढ़ना पड़ता l
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पंगोंग लेक से नुब्रा वैली, वाया श्योक-आगम, की दुरी थी लगभग 250 किलोमीटर l समय से पहुँचने का निश्चय कर और नाश्ता करके हम करीबन साढ़े-नौ बजे नुब्रा वैली के लिए निकल गए l जब हम पंगोंग से निकल रहे थे तभी भारतीय सेना हमारे देश के ध्वज को पंगोंग लेक के किनारे स्थित पोल पर फहरा रही थी l ये पोल वाकई बहुत ही ऊँचा था और ध्वजारोहण होता देख कर हम भी वहाँ रुके और पूरा ध्वज आरोहण समारोह देखा l वहाँ पर हवाएँ अकसर तेज़ ही चलती है और इतने ऊँचे पोल पर हमारे देश का इतना बड़ा ध्वज फहराता देख दिल मे जोश भर गया l ध्वजारोहण देखने के बाद हम टंग्स्टे होते हुए उसी T पॉइंट पर पहुँचे जहाँ हमने कल दोपहर का खाना खाया था l बायीं ओर की सड़क लेह जाती है वाया चांगला पास, इस जगह पर हम कुछ देर रुके, चाय पी और दायीं सड़क पर घूम गए जो की आगम-श्योक की तरफ जाती थी l
पंगोंग लेक से नुब्रा वैली, वाया श्योक-आगम, की दुरी थी लगभग 250 किलोमीटर l समय से पहुँचने का निश्चय कर और नाश्ता करके हम करीबन साढ़े-नौ बजे नुब्रा वैली के लिए निकल गए l जब हम पंगोंग से निकल रहे थे तभी भारतीय सेना हमारे देश के ध्वज को पंगोंग लेक के किनारे स्थित पोल पर फहरा रही थी l ये पोल वाकई बहुत ही ऊँचा था और ध्वजारोहण होता देख कर हम भी वहाँ रुके और पूरा ध्वज आरोहण समारोह देखा l वहाँ पर हवाएँ अकसर तेज़ ही चलती है और इतने ऊँचे पोल पर हमारे देश का इतना बड़ा ध्वज फहराता देख दिल मे जोश भर गया l ध्वजारोहण देखने के बाद हम टंग्स्टे होते हुए उसी T पॉइंट पर पहुँचे जहाँ हमने कल दोपहर का खाना खाया था l बायीं ओर की सड़क लेह जाती है वाया चांगला पास, इस जगह पर हम कुछ देर रुके, चाय पी और दायीं सड़क पर घूम गए जो की आगम-श्योक की तरफ जाती थी l
कुछ देर मे ही
हमने दुरबुक गाँव पार कर लिया l सड़क बेहद अच्छी थी, दुरबुक से थोडा सा आगे निकलते
ही एक नदी हमारे साथ साथ चलने लगी l ये नदी थी श्योक और इसका पानी बेहद साफ़ था l
हम इस यात्रा मे अब तक जहाँ जहाँ भी गए थे, वहाँ से ये भूभाग काफी अलग महसूस हो
रहा था l हरियाली बहुत कम दिख रही थी, सड़क के दोनों ओर बेहद पथरीले पहाड़ थे और
पूरा भूभाग बिलकुल रुखा सा और हल्का भूरा-भूरा सा दिख रहा था l किसी किसी जगह पर दोनो तरफ
के पहाड़ों के बीच की दुरी बहुत कम थी l भूरा पहाड़, उसके साथ बहती हुई नीली- हरी श्योक
नदी, उसके साथ सलेटी सड़क और फिर भूरा पहाड़ l कई जगह श्योक नदी और सड़क की ऊँचाई मे
ज्यादा अंतर नही था और ऐसा लगता था जैसे ये सड़क से बस कुछ ही फीट नीचे बह रही है,
सड़क नयी नयी बनी हुई लग रही थी इसीलिए बाइकिंग का मज़ा दोगुना हो गया था l
दोपहर तक हम
श्योक के आस पास पहुँच गए थे l यहाँ पर एक विचित्र और अद्भूत सी जगह देख कर हम रुक
गए l हम एक पहाड़ की ऊपर की ओर चढ़ती हुई सड़क पर थे l हम उस पहाड़ पर ऊँचाई पर स्थित
थे और उस पहाड़ के दायीं ओर बहुत दूर तक फैला हुआ समतल मैदान था जो कि दूसरी ओर के
पहाड़ तक स्थित था l इस बेहद बड़े समतल मैदान मे बह रही थी श्योक नदी l इस मैदान मे
श्योक नदी की अनेक धाराएँ बह रही थी, कुछ मे पानी था और कुछ बिलकुल सूखी थी पर ये
सब एक अद्भूत दृश्य की रचना कर रही थी l हालांकि श्योक नदी इतनी बड़ी नदी नही है
कि उसे बहने के लिए इतने बड़े समतल मैदान की जरुरत पड़े परन्तु फिर भी उसका ये रूप
अद्वितीय था l कुछ देर हम वहाँ रुके, फ़ोटोज़ लिए और जैसा की हम लगभग हमेशा ही करते
है, कुछ पत्थर नदी मे फेंके l
लगातार एक के बाद
एक पहाड़ चढ़ते और उतरते हुए हम आगे बढ़ते रहे l कहीं कहीं सड़कें बेहद सकड़ी थी पर इतनी
मुश्किल जगहों पर पहाड़ों को काट काट कर सड़कें बनाना भी अपने आप मे बहुत बड़ा काम
है l कुछ जगह पर ऐसा महसूस हुआ की जैसे हम नदी मे ही चल रहे है क्योंकि वहां पर
सड़क नही थी बस गोल गोल छोटे बड़े पत्थर पड़े हुए थे और 2-3 जगह बहता हुआ पानी मिला l
ऐसी जगहों को पार करते हुए लगा कि क्यों ये रास्ता हमेशा खुला हुआ नहीं रहता l इन
जगहों पर अकसर काफी पानी रहता है इसीलिए ये रास्ता कुछ ही समय के लिए खुल पाता है l वहाँ
के स्थानीय वाहन चालकों को ये रास्ते याद रहते है और उनके चोपहिया वाहनों के चलने
से बनी हुई अस्थायी सडक सबके लिए मददगार साबित होती है l
अब हमे कुछ कुछ
जगहों पर सफ़ेद रेत सी दिखने लग गयी थी जो की ये बताती थी की हम जल्द ही नुब्रा
वैली पहुँच जाएँगे l दोपहर के करीब तीन- साढ़े तीन बजे हम एक और सपाट मैदान मे पहुँचे जिसके बीचो-बींच लगभग 8-9 किलोमीटर लंबी सड़क थी, दोनों ओर सफ़ेद रेत, सड़क किनारे छोटे-छोटे
पत्थर और सड़क मानो बिलकुल पहाड़ मे जाकर ख़त्म हो रही थी l इस सड़क को पार करके जब
हम सामने वाले पहाड़ पर पहुंचे और पीछे देखा कि वो सड़क कैसी लगती है तो देखते ही
रह गए l कुछ लोगों ने बताया की रात को यहाँ का दृश्य अद्भुत होता है क्योंकि चाँद
की रोशनी की वज़ह से ये पूरा स्थान चमकता है l कुछ ही देर बाद हमे एक छोटे पहाड़ के
ऊपर बनी हुई बुद्ध भगवान् की बड़ी सी मूर्ति दिखाई दी l ये थी दिस्कित मोनेस्ट्री l
शाम के करीबन 5 बज चुके थे तो हमने ये निर्णय लिया कि ये मोनेस्ट्री हम कल देखेंगे
और अभी चल कर कोई रुकने का जुगाड़ देखते है l रास्ते मे ही हमे एक पेट्रोल पंप
दिखा जहाँ लोग अपने वाहनों मे पेट्रोल भरवा रहे थे l हालांकि हमारे पास करीबन 15
लीटर पेट्रोल था जो की हम मनाली से लाद कर चल रहे थे परन्तु हमने सोचा कि भरवा ही
लेते है क्या पता कोई और प्रोग्राम बन जाए l इतनी दुर्गम जगह पर पेट्रोल पंप होना
भी आश्चर्य था l पेट्रोल भरवाते हुए हमने बात की तो पता चला की ये पंप नया नया ही
खुला है l हालांकि पेट्रोल पंप नया ही खुला था पर वो पेट्रोल पंप बिजली से नही
चल रहा था l बिजली की बजाय वो पंप एक लीवर से चलता था जिसको कि पेट्रोल भरने वाला
अपने हाथ से घुमाता था l खैर, जहाँ हमे पेट्रोल मिलने की बिलकुल भी उम्मीद नही थी वहाँ पेट्रोल
मिलने की ऐसी ख़ुशी हुई कि पूछो मत l
कई बार मन मे ख्याल आता है कि कोई भी वस्तु
जो हमे बड़ी आसानी से उपलब्ध होती है हम उसकी क़द्र नही कर पाते या यूँ कहूँ कि
हम उसका सही मूल्य नही जान पाते और ये बात सबसे ज्यादा हमारे रिश्तों पर भी लागू
होती है l काश सभी को इस बात का एहसास हो तो हमारा जीवन कितना आनंद से भर जाए l सभी मोटरसाइकिल मे पेट्रोल भरवा कर हम आगे बढ़ गए और हंडर पहुँच गए l हंडर
नुब्रा वैली मे स्थित छोटा सा गाँव है और यहाँ रुकने के लिए काफी विकल्प है l 2-3
जगह देखने के बाद हमे एक जगह पसंद आ गयी l इसका नाम था एपल कोटेज और ये काफी अच्छी
जगह थी और बहुत बड़े क्षेत्र मे फैली हुई थी l कुछ देर मोल भाव किया और हमने करीबन
3000 रुपए मे टेंट पसंद कर लिया जिसमे की रात का खाना और सुबह का नाश्ता शामिल था l
टेंट बिलकुल उसी टेंट की तरह था जिसमे हम पंगोंग झील पर रुके थे l
वो टेंट जहाँ
लगे थे वो जगह काफी शांत और सुन्दर थी, सामने ही बागीचा था जिसमे की कई तरह के फूल
खिले थे l सामान टेंट मे रखने के बाद हमने हाथ मुहँ धोये, चाय पी और कुछ देर इस
रिसोर्ट मे घुमे l कुछ देर बाद हम सब हंडर घुमने निकल गए l बाहर हमे कई लोग मिले
जो की देश के अलग अलग हिस्सों से घुमने आये हुए थे l करीबन एक-डेढ़ घंटा बाहर बिताने के बाद हम पुनः
हमारे रिसोर्ट मे आ गए और हमारे टेंट के बाहर लगी कुर्सियों पर बैठ गए l उसके बाद करीबन दो-ढाई घंटे हमने गप्पे मारे और
पार्टी की l रात करीब नौ बजे के आस पास हम रात का खाना खाने गए l खाना लगभग वही था
जैसे सूप , दाल, रोटी, सब्जी, चावल, चाय, काफी इत्यादि l रिसोर्ट मे ज्यादा भीड़
नही थी और हमारे अलावा बमुश्किल 15-20 लोग और रहे होंगे l खाने के बाद हम दुबारा
कुछ देर घुमे और फिर अपने टेंट मे आकर लेट गए l आज का दिन बहुत रोमांचकारी और
अच्छा रहा था l दिन मे हुए विभिन्न अनुभव के बारे मे बात करते हुए कब नींद आ गयी, पता
ही नही चला l
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पंगोंग के किनारे सुबह सुबह |
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भारतीय सेना पंगोंग के ऊपर गश्त लगाती हुई |
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अलविदा पंगोंग, फिर मिलेंगे |
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पंगोंग से निकलते हुए |
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ध्वजारोहण |
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ध्वजारोहण |
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भारत माता की जय |
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विचित्र भूभाग |
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श्योक नदी |
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श्योक नदी |
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श्योक नदी कहीं कहीं काफी बड़े भूभाग से बहती है |
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श्योक नदी |
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Add caption |
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सुनसान और खुबसूरत रास्ते |
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श्योक नदी अपने अलग ही रूप मे |
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श्योक नदी की धाराए |
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बमुश्किल दिखती हरियाली |
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वैली से गुजरती श्योक नदी |
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चारों ओर पहाड़ों के बीच बिलकुल सीधी सड़क |
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नुब्रा वैली |
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नुब्रा वैली |
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हुंडर |
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हमारे टेंट के सामने लगा फूलों का बागीचा |
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टेंट जहाँ हम रुके थे |
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