Trip To Spiti Valley - Jaipur to Chandigarh | स्पिति वैली यात्रा - जयपुर से चंडीगढ़
स्पिति वैली यात्रा - 31 मई 2019 - जयपुर से चंडीगढ़
सुबह 4.30 के अलार्म बजने से 2 मिनट पहले ही आँख खुल गयी, पता नहीं ये क्या व्यवस्था है ? जब भी मैं अलार्म लगाता हूँ, हमेशा अलार्म बजने के 2 मिनट पहले ही उठ जाता हूँ l ऐसा भी नहीं है की मैं सोता नहीं हूँ या मुझे कोई तनाव रहता हो फिर भी ऐसा इक्की-दुक्की बार ही हुआ है की मुझे अलार्म ने उठाया हो l खैर, उठे, चाय पी, नहाये-धोये और भगवान् के दिया-बत्ती करके बाइक पर सामान लगाया l ये बाइक पर सामान लगाना और निकालना, वास्तव में बहुत परेशानी का काम है, लगता तो छोटा सा ही काम है पर इसमें समय लग ही जाता है l विक्रांत और मुझे सुबह 6 बजे मोती डूंगरी गणेश मंदिर मिलना था लेकिन मैं मेरे घर से लगभग 6.20 के आस पास निकल पाया और मंदिर पहुँचते पहुँचते 6.35 हो गए l
मैं जब मंदिर पहुँचा तो देखा विक्रांत आ चूका था और फ़ोन पर अपने बेटे से बात कर रहा था l असल में विक्रांत का बेटा भी विक्रांत के साथ इस यात्रा पर आने के लिए जिद कर रहा था इसीलिए विक्रांत उसको फ़ोन पर समझा रहा था l कई बार बच्चों को समझाना भी काफी मुश्किल भरा काम होता है क्योंकि आजकल के बच्चों के पास हर प्रश्न का जवाब होता है और वो तर्क-वितर्क में भी माहिर होते है l खैर, मोती डूंगरी गणेश मंदिर अश्वनी के परिवार का ही है इसीलिए हमने अश्वनी को फ़ोन किया की हम मंदिर ही है और यात्रा शुरू करने वाले है l हमे लगा था की अश्वनी उठ गया होगा, हमसे मिलने आएगा और साथ में 5-7 बेसन के लड्डू भी ले आएगा लेकिन अश्वनी तो घोड़े बेच कर सो रहा था l हालाँकि हमारे फ़ोन से वो उठ गया पर वो काफी नींदों में लग रहा था ऐसे में हमने अश्वनी को बुलाने का विचार त्याग दिया और लगभग 7 बजे के आस पास बिना लड्डू खाए ही हम मोती डूंगरी गणेश मंदिर से निकल गए l पहले हमने बाइक्स में पेट्रोल फुल करवाया और फिर कुछ ही देर बाद हम NH-8 पर थे l
हाईवे पर आते ही हमे हमारी लेह-लद्दाख़ यात्रा की याद आ गयी बस फर्क ये था की उस दिन हमारे साथ सत्या भी था l गर्मियों की सुबह काफी सुहावनी होती है और हमने योजना बनायी थी की सुबह सुबह जितना दूर जा सकें उतना ही हमारे लिए अच्छा होगा l हम बिना रुके लगातार चलते रहे और पहला ब्रेक हमने लगभग नौ बजे, 135 किलोमीटर दूर होटल हाईवे किंग बहरोड़ में लिया l अब हमे भूख भी लगने लग गयी थी, हाँ अगर अश्वनी 2-4 लड्डू खिला देता तो हम बाइक और खीँच लेते पर अब हमने सोचा की कुछ नाश्ता कर ही लेते है l नाश्ते में हमने इडली, मसाला-डोसा और छाछ ली l नाश्ता करते करते मैंने और विक्रांत ने निर्णय लिया की आज दोपहर के खाने में तो मुरथल के प्रसिद्ध आलू के पराँठे ही खायेंगे l गूगल मैप्स मुरथल जाने के दो रास्ते बता रहा था l पहला 170 किलोमीटर वाया पेरिफेरल एक्सप्रेस हाईवे और दूसरा 185 किलोमीटर वाया झज्झर l हमने सोचा की आज पेरिफेरल एक्सप्रेस हाईवे से ही चलते है क्योंकि ये हमने देखा हुआ नहीं था l नाश्ता करके कुछ देर बैठे और फिर लगभग 10 बजे हम आगे के लिए निकल पड़े l
कुछ देर बाद पंचगांव से हम पेरिफेरल एक्सप्रेस हाईवे पर चढ़ गए l थोड़ी देर इस हाईवे पर चलने के बाद हमे अंदाज़ा हो गया की ये हाईवे तो बिलकुल ही बोर और उजाड़ है l हालाँकि ये हाईवे नया है पर चूँकि ये सामान्य जमीन से कुछ ऊँचाई पर बनाया हुआ है और दोनों तरफ रेलिंग लगाई हुई है तो यहाँ ना तो कुछ अच्छा दिखता है और ना ही कुछ सुविधायें है l ना पेड़ है, ना हरियाली है, ना दुकानें है और ना पेट्रोल पंप है बस कुछ है तो सीधी सड़क l अगर आपके वाहन में कुछ हो जाए तो मदद भी शायद ही मिल पाए l दोपहर के लगभग साढ़े ग्यारह बज गए थे और अब गर्मी का एहसास होने लग गया था l विक्रांत और मैं इस हाईवे पर चलते रहे, चलते रहे पर कहीं भी थोड़ी सी भी छाया नहीं मिली की हम पानी पी ले और सुस्ता ले l आखिरकार कुछ देर बाद एक जगह हाईवे के ऊपर से जाता हुआ एक पुल मिला जिसकी वजह से हाईवे के कुछ भाग पर छाया थी l वहाँ पर हम कुछ देर रुके, पानी पीया और विश्राम किया l
पेरिफेरल एक्सप्रेस हाईवे से उतरते ही कुछ देर बाद मुरथल आ गया l यहाँ पर एक से एक जबरदस्त ढाबे है, असल में ढाबे का तो सिर्फ नाम है, कीमतों के हिसाब से ये किसी भी अच्छे होटल से कम नहीं है l हम यहाँ पर झिलमिल ढाबे पर रुके, इस वक़्त यही कोई दिन का एक बजा होगा l गर्मी जबरदस्त हो चुकी थी, रुकते ही हेलमेट, ग्लव्स, जैकेट खोल फेंके और पानी से अच्छी तरह हाथ-मुँह धोये l अन्दर AC में बैठे और आलू के परांठे, दही आर्डर किये l आलू के परांठे, दही, खालिस देसी सफ़ेद मक्खन, छुकीं हुई हरी मिर्च, स्वाद ही स्वाद में खूब दबा के खा लिए और उसके बाद ठंडक की वजह से सुस्ती सी आने लगी l अभी मुरथल से हमारा होटल लगभग 200 किलोमीटर और था इसीलिए निकलना भी जरुरी था l ढाबे पर हम काफी देर तक सुस्ताते रहे और जब सुस्ती ज्यादा छाने लगी तो चाय का आर्डर किया l चाय पी कर हम दुबारा सड़क पर थे l
उधर जयपुर में अतिउत्साह के कारण रजत ने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी और अश्वनी, राजेश का ऑफिस में मन ही नहीं लग रहा था l किसी लम्बी छुट्टियों पर घुमने जाना हो तो 2-3 पहले ही उचंती सी लगने लग जाती है l इस यात्रा के लिए हम सबने ने व्हाट्सएप्प पर एक ग्रुप बना लिया था और अब हम सब इसके जरिये आपस में बातें साझा कर रहे थे मसलन विक्रांत और मैं कहाँ तक पहुँच गए, हम खाना कहाँ खा रहे है इत्यादी इत्यादि l
मुरथल के बाद तो गर्मी अपना पूरा रोद्र रूप दिखाने लग गयी थी, हम थोड़ी थोड़ी देर में रुक कर पानी ही पानी पिए जा रहे थे लेकिन फिर भी शरीर पानी ही पानी माँग रहा था l कुरुक्षेत्र मे गन्ने का रस पिया उसके बाद हम अम्बाला के पास सड़क किनारे छाया में खड़े एक ठेले पर नींबू सोडा पीने रुके l यहाँ पर हमे एक भाई साहब मिले जो 12-13 साल तक हर साल लेह-लद्दाख़ जा कर आते थे l दुनिया में भी क्या गज़ब गज़ब जुनूनी लोग है, कुछ लोग घर के बाहर निकलने से भी डरते है और कुछ माउंट एवरेस्ट पर चढ़ जाते है l वास्तव में इंसान का जूनून ही है जो उससे असंभव से असंभव काम भी करवा लेता है l
नींबू सोडा पीने के बाद हम जीरकपुर तक कहीं नहीं रुके l जीरकपुर पहुँच कर श्रीमान गूगल को देख देख कर होटल की तरफ बढ़ते रहे और जैसा की कई बार होता है, श्रीमान गूगल ने हमे गोल गोल घुमा दिया l पूरे दिन बाइक चलाने के बाद थक कर चूर हुए हम बेचारों के साथ गूगल ने भी मजे ले लिए l आखिरकार काम स्थानीय लोग ही आये और उनकी सहायता से हम लगभग शाम 5.30 बजे हमारे होटल पहुँच गए l
कमरे में पहुँच कर सबसे पहले AC-पंखा चलाया, पसीने सुखाये, एक-दो जगह फ़ोन किया और फिर नहाये l नहाने के बाद इतनी तसल्ली मिली की क्या बताये l हमारा होटल काफी अच्छी जगह था और आस पास पूरा बाज़ार था इसीलिए नहा धो कर मैं और विक्रांत पैदल पैदल ही घुमने निकल गए l बाज़ार से बाइक के लिए चैन ल्यूब और कुछ जरुरी सामान ख़रीदा l उधर जयपुर में रजत, राजेश और अश्वनी को इतनी उचंती लग रही थी की वो दो घंटे पहले ही खाना, नमकीन और मीठा ले कर स्टेशन पहुँच गए l उत्साह से लबरेज़ कैपरी, टीशर्ट और मस्त टोपी लगाकर पूरे के पूरे पर्यटक बने हुए थे और लगभग पौने आठ बजे उन्होंने ट्रेन पकड़ ली l विक्रांत और मैं काफी देर बाज़ार घुमे और फिर होटल में आकर खाना खाया और सो गए l कल हम सब को मिलना था और फिर नारकंडा के लिए प्रस्थान करना था l हम बहुत खुश थे क्योंकि कल से हमे पहाड़ों के रास्ते मिलने वाले थे और गर्मी भी यकीनन रूप से कम होनी थी l
विक्रांत और मैं, गणेश मंदिर पर यात्रा से पहले |
खुबसूरत सुबह @ NH-8 |
नाश्ते के लिए हाईवे किंग बहरोड़ पर रुके |
पेरिफेरेल हाईवे पर पुल के कारण नसीब हुई एक मात्र छाया |
ट्रक वाले तक इस छाया के मुरीद थे |
पेरिफेरेल हाईवे |
मुरथल के पराँठे |
घरौंदा |
जबरदस्त गर्मी में शज़र का सहारा |
कुरुक्षेत्र के पास जम्बो गन्ने के रस का आनंद उठाया |
गन्ने के रस वाले को भी बाइक यात्रा में खासी रूचि थी |
गन्ने के रस वाला और विक्रांत |
अंबाला की ओर |
अंबाला के पास निम्बू सोडा लिया, गुलाबी टी-शर्ट वाले भाई साहब 13-14 साल तक हर साल लेह-लद्दाख़ गए थे ! |
जीरकपुर में हमारा होटल |
हमारा कमरा |
रजत, अश्वनी और राजेश दो घंटे पहले ही रेलवे स्टेशन पहुँच गए :) |
स्पिति वैली यात्रा का सम्पूर्ण वृतांत
स्पिति वैली यात्रा - प्रस्तावना
स्पिति वैली यात्रा - जयपुर से चंडीगढ़
स्पिति वैली यात्रा - चंडीगढ़ से नारकंडा
स्पिति वैली यात्रा - नारकंडा से कल्पा
स्पिति वैली यात्रा - कल्पा से ताबो
स्पिति वैली यात्रा - ताबो से काज़ा
स्पिति वैली यात्रा - काज़ा
स्पिति वैली यात्रा - काज़ा से नारकंडा
स्पिति वैली यात्रा - नारकंडा से जयपुर
स्पिति वैली यात्रा - जयपुर से चंडीगढ़
स्पिति वैली यात्रा - चंडीगढ़ से नारकंडा
स्पिति वैली यात्रा - नारकंडा से कल्पा
स्पिति वैली यात्रा - कल्पा से ताबो
स्पिति वैली यात्रा - ताबो से काज़ा
स्पिति वैली यात्रा - काज़ा
स्पिति वैली यात्रा - काज़ा से नारकंडा
स्पिति वैली यात्रा - नारकंडा से जयपुर
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
Popular Posts
-
लेह लद्दाख़ यात्रा 2017 - 10 सितम्बर - चंडीगढ़ से मनाली सुबह छ बजे के अलार्म से हमारी नींद टूटी l नहा-धो कर होटल से निकलने मे हमे लगभग ...
-
लेह लद्दाख़ यात्रा 2017 - 15 सितम्बर - लेह से पंगोंग लेक सुबह करीबन साढ़े छ बजे आँख खुली l आज हमे पंगोंग लेक जाना था और पंगोंग लेक की दुर...
No comments :
Post a Comment