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Trip To Spiti Valley - Kalpa To Tabo | स्पिति वैली यात्रा - कल्पा से ताबो

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स्पिति वैली यात्रा - 03 जून 2019 - कल्पा से ताबो

पिछली शाम को होटल की छत से लगभग एक-डेढ़ घंटा किन्नर कैलाश को निहारने के बाद भी हम अल-सुबह लगभग पाँच बजे ही दुबारा अपने होटल की छत पर पहुँच गए, कारण था किन्नर कैलाश पर्वत श्रृंखला पर होने वाला सूर्योदय l रजत ने रात को ही इस सूर्योदय को देखने ली योजना बना ली थी और इस पल को सहेजने के लिए वो और अश्वनी अपने शानदार और पेशेवर कैमरों के साथ पूरी तरह तैयार थे l सुबह सुबह अच्छी खासी ठण्ड थी और हम सबको गर्म कपड़ों के साथ साथ गर्म टोपे की जरुरत भी पड़ी थी l इस सुबह के वातावरण में सूर्योदय के समय किन्नर कैलाश पर्वत श्रृंखला बहुत ही अलग नज़र आ रही थी l हलकी हलकी ठंडी हवा चल रही थी और पाँच रंगों के बुद्धिश झंडे इन हवाओं से सकारात्मक ऊर्जा को चारों ओर फैला रहे थे l लगभग पौने-छ बजे सूरज की किरण ने किन्नर कैलाश को छुआ और बीस मिनट बाद सूर्यदेव ने पर्वत श्रृंखला के पीछे से निकल कर हमे दर्शन दिए l इस दौरान किन्नर कैलाश पर्वत श्रृंखला का रंग हर क्षण बदलता रहा और चोटियों पर पड़ी बर्फ कभी सोने सी चमकती तो कभी चाँदी सी l

हमने रात को ये योजना बनायीं थी की हम आठ बजे से पहले पहले ताबो के लिए निकल जाएँगे l हालाँकि कल्पा से ताबो की दुरी लगभग 150 किलोमीटर के आस पास ही थी लेकिन हम रास्ते में पड़ने वाले नाको में रूककर वहाँ की मोनेस्ट्री और झील देखना चाहते थे इसीलिए सूर्योदय देखने के बाद हम सब चाय पी कर, नहा-धो कर तैयार हो गए और सुबह साढ़े-सात बजे के आस पास ही नाश्ता करने पहुँच गए l होटल गोल्डन एप्पल की साज-संभाल और उसका प्रबंधन एक लेडी के पास था और इसीलिए ही इस होटल का खाना काफी अच्छा था l नाश्ता करने के बाद कल्पा से निकल कर हम रिकोंग-पिओ स्तिथ पेट्रोल पंप पहुँचे क्योंकि अब हमे काज़ा तक कोई भी पेट्रोल पंप नहीं मिलने वाला था l कल्पा से काज़ा लगभग 210 किलोमीटर है लेकिन रास्ते में पड़ने वाली पिन वैली घुमने की भी हमारी योजना थी, जिससे कुल दूरी लगभग 300 किलोमीटर पड़ जाती इसीलिए विक्रांत और मैंने अपनी बाइक्स में पेट्रोल और ड्राईवर सोनू ने अपनी इनोवा में डीजल फुल करवा लिया l हालाँकि इसकी जरुरत तो नहीं थी फिर भी हमने एक बोतल में अतिरिक्त पेट्रोल ले लिया l   

रिकोंग-पिओ से निकलने के कुछ ही देर बाद सड़कें बेहद खराब हो गयी, सड़कें कच्ची और सकड़ी थी l कुछ ही देर बाद हम सब को लैंड-स्लाइड के कारण रुकना पड़ा l एक JCB सड़क पर गिरे हुए पत्थरों और मलबे को हटा रही थी l ये लैंड-स्लाइड ताज़ा-ताज़ा सी लग रही थी, विचार आया कि अगर हम कुछ देर पहले यहाँ से गुजर रहे होते तो? उन पत्थरों का आकार देख कर लग रहा था की अगर ये किसी चलते वाहन के ऊपर गिर जाए तो उसका बचना नामुमकिन ही होता होगा l खैर पहाड़ी क्षेत्रों में लैंड-स्लाइड के ये दृश्य सामान्य ही है l कुछ ही समय में JCB ने सड़क पर पड़े हुए छोटे बड़े पत्थरों और मलबे को साथ ही बहती हुई सतलज में गिरा दिया और वाहनों के लिए सड़क साफ़ कर दी l यहाँ से निकले तो आगे पुनः एक JCB सडक से पत्थर हटाती मिली, ये देखकर ऐसा लगा की आज तो सड़क यूँ ही मिलने वाली है लेकिन कुछ देर चलने के बाद अच्छी डामर युक्त सड़क आ गयी l

लगभग ग्यारह बजे के आस पास मैं और विक्रांत स्पिलो पहुँचे तो हमारी चाय पीने की इच्छा हुई l हमे मालुम था की रजत, राजेश और अश्वनी भी कुछ ही समय में वहाँ पहुँचने वाले होंगे और चाय पीने का कीड़ा तो उनके भी कुलबुला ही रहा होगा खासकर राजेश के इसीलिए मैं और विक्रांत एक ढाबे पर बैठ गए l उनके आने के बाद हम कुछ देर वहीँ रुके और चाय-बिस्किट-नमकीन ली l स्पिलो बहुत ही छोटा सा गाँव है और मुख्य सड़क के दोनों और बमुश्किल पंद्रह-बीस दुकाने थी l स्पिलो से निकलते ही सड़कें पुनः एक बार फिर बेहद ख़राब हालात में आ गयी l हरियाली से भरपूर कल्पा की तुलना में अब वातावरण पूरी तरह भिन्न हो चूका था और पेड़-पौधे बहुत ही कम दिखने लगे थे l हर जगह रुखा-रुखा, भूरा-पथरीला भूभाग नज़र आ रहा था और यहाँ तक की सतलज भी मटमैली सी हो गयी थी l

सड़क के अच्छे-बुरे हिस्सों से होते हुए हम पहले पुह पहुँचे और फिर लगभग दोपहर एक बजे खाब संगम पहुँचे l खाब एक छोटा सा गाँव है और यहाँ पर स्पिति नदी और सतलज नदी का मिलन होता है इसीलिए इस जगह का नाम खाब संगम है l अब तक हम सतलज के साथ साथ चल रहे थे लेकिन अब यहाँ से हमे स्पिति नदी के साथ साथ चलना था l यहाँ पर सड़क एक बड़े लोहे के पुल, जो की सतलज पर है, से होती हुई सीधे पहाड़ी गुफा में जाती हुई प्रतीत होती है और चारों ओर बहुत ऊँचे ऊँचे पथरीले पहाड़ है l ये संगम इतना अद्भुत था की हम सब यहाँ पर लगभग आधा घंटा रुके और खूब फ़ोटोज़ लिए l 

खाब संगम के बाद हम कहीं भी नहीं रुके और दोपहर लगभग तीन बजे नाको स्तिथ नाको मोनेस्ट्री पहुँचे l हंगरंग वैली में स्तिथ नाको गाँव लगभग 11,900 फीट की ऊँचाई पर स्तिथ है और यहाँ पर दो दर्शनीय स्थल है पहली नाको मोनेस्ट्री और दूसरी नाको झील l नाको मोनेस्ट्री को 1975 में आये हुए भूकंप और 1998 की जबरदस्त सर्दियों की वजह से काफी नुक्सान पहुँचा था और उसके बाद इस मोनेस्ट्री को दुबारा से ठीक किया गया l इस मोनेस्ट्री में रजत ने अपने 360 डिग्री कैमरे से कुछ बेहतरीन फ़ोटोज़ भी ली l इसके बाद हम सब नाको झील गए लेकिन हमे ये झील काफी साधारण सी लगी l दोपहर का खाना हम सब ने नाको स्तिथ एक छोटे से ढाबे में ही खाया l वहाँ पर खाने में ज्यादा विकल्प नहीं थे और हम सबने दाल-चावल ही खाए l  

लगभग साढ़े चार बजे हम सब नाको से ताबो के लिए रवाना हुए l नाको से ताबो तक की सड़क काफी अच्छी थी और हम स्पिति नदी के किनारे किनारे ही चलते रहे l हम चंगों, शिअल्खर होते हुए शाम छ बजे के आस पास ताबो पहुँच गए l ताबो 10,760 फीट की ऊँचाई पर स्पिति नदी के किनारे बसा हुआ एक छोटा सा गाँव है और यहाँ हम होटल स्नो-लेपर्ड में रुकने वाले थे l होटल पहुँचे तो दिल और भी खुश हो गया क्योंकि हमारा होटल ताबो की मोनेस्ट्री के बिलकुल पास था l होटल की लोकेशन तो अच्छी थी ही साथ में होटल के कमरे भी काफी अच्छे और बड़े बड़े थे l होटल का प्रबंधक शेवांग तेंदीन बहुत ही बढ़िया और सज्जन व्यक्ति था और वो देवानंद जैसी फ्लैट टोपी पहनता था l हालाँकि रजत, राजेश और अश्वनी को एक ही कमरे में रुकना था लेकिन शेवांग जी ने उन्हें दो कमरे दे दिए l इस पर हमने भूत-पिशाच की बातें चालू कर दी और दो कमरे मिलते ही अश्वनी के दिल में खौफ बैठ गया आज रात तो उसे ही अकेले सोना पड़ेगा l मौके की नजाकत देखते हुए अश्वनी अतिरिक्त गद्दे के लिए शेवांग जी से निवेदन करने की सोचने लगा जिससे वो तीनों एक ही कमरे में सो पायें और भूत उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए l एक पूरे बिस्तर पर आराम से सोने और अश्वनी के हालात के बारे में सोच कर आखिरकार राजेश दुसरे कमरे में अकेला सोने को राज़ी हो गया तब जा कर अश्वनी की साँस में साँस आई l 

होटल में गर्म पानी की अच्छी व्यवस्था थी इसीलिए नहा कर तरो-ताज़ा होकर हम मोनेस्ट्री देखने चले गए l ताबो मोनेस्ट्री बहुत पुरानी और प्राचीन है और इसके चलते ये काफी जर्जर अवस्था में पहुँच गयी थी परन्तु अब इसको दुबारा संग्रक्षित किया गया है l हम शाम के बाद यहाँ पहुँचे थे और इस वक़्त यहाँ पर्यटकों को अन्दर जाने की अनुमति नहीं होती है इसीलिए हम इसके नए प्रांगण में ही कुछ देर घुमे l कुछ देर घुमने के बाद हम अपने होटल पहुँचे और रोज़ शाम की तरह एक बार फिर किस्से-कहानियों के दौर चल पड़े l जैसे पेट की भूख शान्त करने के लिए खाना खाया जाता है उसी प्रकार हम रोज़ शाम को दो-ढाई घंटे हमारे दिल और दिमाग को गपशप की खुराक दिया करते थे l    

किस्से-कहानियों के बाद आखिरकार रात को साढ़े-नौ बजे के आस पास हम सब खाना खाने पहुँचे l शेवांग जी ने रसोइये भी बहुत अच्छे रखे हुए थे और उन्होंने बहुत ही बढ़िया और गर्म खाना खिलाया l रोज़ रात की तरह खाना खा कर कुछ देर चहलकदमी की और फिर अपने अपने कमरों में जा कर सो गए l कल हम सब अपनी मंजिल, जो की काज़ा थी, पहुँचने वाले थे l अभी तक का ये सफ़र बहुत ही शानदार रहा था और आगे भी हम ऐसी ही उम्मीद कर रहे थे l

सूर्योदय @ किन्नर कैलाश 

पहाड़ों की चोटियों पर चमकती चांदी सी बर्फ

रिकोंग-पिओ का मुख्य चौक

रिकोंग-पिओ के बाद मिले ख़राब रास्ते

साफ़ बहता हुआ पानी

JCB सड़क से पत्थर और मलबा हटाते हुए

लैंड-स्लाइड के मलबे को सतलज में ही डाला जाता है 

JCB की खुदाई

खुबसूरत झरने

बदलता हुआ भूभाग

दूर दूर तक कोई नहीं 

लकड़ी के फट्टों से निर्मित पुल

सावधानी हटी दुर्घटना घटी

स्पिलो की ओर

स्पिलो

स्पिलो के बाद मिली बेहद ख़राब सड़क

हरियाली का अभाव

रुखा-भूरा वातावरण

नाको की ओर

खाब संगम

खाब संगम पर सतलज के ऊपर बना चौड़ा पुल

सतलज

मेरी धन्नो @ खाब संगम

नाको की ओर जाती पहाड़ी गुफा

एक फोटो तो बनती है !

ड्राईवर सोनू - रिस्की सेल्फी लेते हुए

खाब संगम

सकड़ी सड़कें

जर्जर रास्ते

नाको की ओर

साफ़ नीला आकाश

नाको की ओर

क्या रास्ते है :)

नाको

ज्यादा बाल वाले पहाड़ी गधे

नाको मोनेस्ट्री

नाको मोनेस्ट्री

नाको गाँव

नाको झील

ताबो की ओर

रास्ते में कुछ गाँवों की मिली हरियाली

ताबो की ओर

छोटे छोटे गाँवों को जोड़ते हुए पुल

स्पिति नदी

ताबो की ओर

ताबो का मुख्य द्वार

रात का स्वादिस्ट खाना @  स्नो-लेपर्ड

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