स्पिति वैली यात्रा - 02 जून 2019 - नारकंडा से कल्पा
सुबह लगभग सवा-पाँच ही आँख खुल गयी l हाथ मुँह धो कर, विक्रांत और मैं फर्स्ट फ्लोर स्तिथ रजत, राजेश और अश्वनी के कमरे के बाहर बनी बालकानी में पहुँच गए l रजत पहले से ही बालकानी में था और खुबसूरत नज़ारों को अपने कैमरे में कैद कर रहा था l सुबह सुबह हलकी सी गुलाबी ठण्ड थी, पेड़ों से टकराकर आने वाली मद्धम-मद्धम हवा बहुत ताज़ा लग रही थी और वातावरण में जबरदस्त शान्ति थी l शहरों में ऐसे वातावरण की बस कल्पना ही की जा सकती है और अगर रोज़ ही ऐसे वातावरण में दिन की शुरुआत हो तो यक़ीनन आदमी की उम्र बढ़ जाए l इस वक़्त जिस चीज़ की कमी थी वो थी चाय पर सुबह के साढ़े पाँच बजे चाय मिलने में यक़ीनन संदेह ही था l कुछ देर बालकानी से प्रकृति का आनंद लेने के बाद हम सब चाय के लिए अंकल की रसोई के आस पास भटकने लग गए l हमे पता लगा की चाय तो लगभग सात बजे के आस पास ही मिलेगी जब अंकल का रसोइया चंद्रू होम स्टे पहुँचेगा वो भी दूध ले कर l ये देखकर हम सब एक छोटी सी सुबह की सैर पर निकल गए l
साढ़े छ बजे के आस-पास चंद्रू दूध ले कर आया और उसके बाद ही हमे चाय नसीब हुई l चाय पी कर नहा-धो कर हम सब लगभग साढ़े आठ अंकल के पास पुनः नाश्ता करने पहुँचे l नाश्ते में अंकल-आंटी ने हमे आलू से भरी हुई पूरी खिलाई और साथ में थे दही, सब्जी और तीखी लाल मिर्च की मस्त चटनी l अंकल जी का परोसगारी में कुछ कम ही ध्यान था और इस कारण बेचारा अश्वनी भूखे रहने से बाल बाल बचा l
नाश्ता करके हम सब कल्पा के लिए रवाना हो गए l नारकंडा से कल्पा की दुरी है लगभग 175 किलोमीटर और आज हमे किन्नोर के खुबसूरत रास्तों से गुजरना था l नारकंडा से नीचे उतरने वाला और रामपुर की ओर जाने वाला रास्ता वाकई बेहद खूबसूरत था और कुछ देर बाद हम सतलज व्यू पॉइंट पहुँचे, जहाँ से पहली बार आप इस रास्ते पर सतलज नदी को देख सकते हो l हालाँकि हम काफी ऊँचाई पर थे और सतलज काफी नीचे बहती दिख रही थी पर जैसे जैसे हम नारकंडा से नीचे आये, सतलज हमारे साथ साथ ही बहने लगी और अब ये नदी लगभग पूरे रास्ते ही हमारे साथ ही बहने वाली थी l
दोपहर लगभग बारह बजे हम रामपुर पहुँच गए l यहाँ हम कुछ देर प्रसिद्ध श्री महिष मर्दिनी महालक्ष्मी मंदिर रुके जिसमे हनुमान जी की बहुत बड़ी और रंगीन मूर्ति है l दोपहर के लगभग एक बजे हम सब जेओरी रुके और वहाँ ड्राईवर सोनू की सिफ़ारिश पर एक होटल में खाना खाया l खाना खा कर पुनः आगे रवाना हो गए, सुरु के बाद सुदूर बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ देख कर आनंद आ गया और दोपहर लगभग सवा दो बजे हम किन्नोर जिले में प्रवेश कर गए l किन्नोर में प्रवेश करने के बाद नज़ारे बहुत ही अलग से लगने लग गए l सडक बहुत ही अच्छी और ऊँचाई पर स्तिथ थी और अधिकतर जगह सड़क के किनारे खाई की ओर रेलिंग लगी हुई थी l किन्नोर में पहाड़ बहुत मजबूत दिखते है अपेक्षाकृत लद्दाख़ के जहाँ पहाड़ मिट्टी के से बने प्रतीत होते है l किन्नोर के इन पहाड़ों का रंग हल्का भूरा-काला है, पहाड़ों में छितराई हुई सी हरियाली और पेड भी है, ये सब मिलकर काफी अलग सी प्राकृतिक छठा पेश करते है l
किन्नोर के इस शानदार वातावरण में बाइक चलाने में अलग ही आनंद आ रहा था l दोपहर लगभग तीन बजे हम उस प्रसिद्ध कटे हुए पहाड़ वाले स्थान पर पहुँचे तो उसे सच में देखने और महसूस करने में बहुत ही आनंद आया l काफी बार ये स्थान विभिन्न फोटोज़ और विडियोज़ में तो देखा हुआ था परन्तु उसे यतार्थ में देखने में अलग ही आनंद आया l जब हम यहाँ पहुँचे तो हलकी-हलकी बारिश होने लग गयी थी इसीलिए कुछ देर हम इस पहाड़ी सुरंग में ही रुके रहे l रजत, राजेश और अश्वनी हम से कुछ ही पीछे थे l
कुछ जगह तो सड़क, पहाड़ के एक सिरे को काट कर इस तरह से बनायीं गयी थी की सड़क के ऊपर खुला आकाश ना होकर पहाड़ से बनी हुई छत ही दिखती थी और यहाँ से निकलने में बहुत रोमाँच का अहसास होता था l सतलज अभी ही हमारे साथ साथ ही चल रही थी l सुनगर, अगड़े होते हुए हम लगभग शाम चार बजे वांग्टू पहुँच गए, यहाँ करछम-वांग्टू हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट मौजूद है जिसे करछम-वांग्टू डैम पर बनाया गया है l इस प्रोजेक्ट में कुछ जगह पहाड़ों से सटी हुई सीमेंट से बनी हुई दीवारों को तो लगभग पहाड़ के शीर्ष तक बनाया गया है और ये अनायास ही गेम ऑफ़ थ्रोंस से बनी बर्फ की दिवार की याद दिलाती है l
सतलज पर बने शोंगटोंग पूल से होते हुए जल्द ही हम रिकांग-पिओ की ओर जाती हुई सकड़ी सी सड़क पर चलने लगे l रिकांग-पिओ की ओर चढ़ती हुई इस सड़क पर वाकई कई तीव्र मोड़ थे और कुछ ऊँचाई पर पहुँचने के बाद वहाँ से दिखने वाले वाले नज़ारे तो लाज़वाब थे जैसे कोई चित्रकार चित्र बनाता है, साफ़ नीला आकाश, सुदूर दिखती हुई बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ, चारों ओर हरियाली से ओत-प्रोत पहाड़ और बीच में बहती हुई नदी l बचपन में अकसर ऐसे दृश्य ड्राइंग बुक में बनाते थे लेकिन यक़ीनन ये यथार्थ में ज्यादा खुबसूरत लगते है l हालाँकि 7,513 फीट पर स्तिथ रिकांग-पिओ की आबादी बहुत ज्यादा नहीं है फिर भी यहाँ पहुँच कर हमने कई दिनों बाद ट्रैफिक लाइट देखी l
रिकांग-पिओ से कल्पा तक की सड़क भी सकड़ी और बेहद खुबसूरत थी l 9,711 फीट पर स्तिथ कल्पा छोटा सा गाँव है और यहाँ बहुत ही हरियाली है l यहाँ के छोटे छोटे रास्तों से होते हुए मैं और विक्रांत शाम के लगभग छ बजे कल्पा स्तिथ होटल गोल्डन एप्पल पहुँचे l रजत, राजेश और अश्वनी इसी होटल में रुकने वाले थे, वे अभी भी हमारे पीछे ही थे और उन्हें थोडा समय ज्यादा लग रहा था क्योंकि रजत सारे नजारों को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाह रहा था l उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस नज़ारे की फोटो ले और किसे छोड़े l चूँकि विक्रांत ने होटल पर पहले ही बात कर ली थी इसीलिए हमे यहाँ कमरा आसानी से मिल गया l
कमरे में पहुँच कर हाथ-मुँह धो कर मैं और विक्रांत सबसे पहले उस होटल की छत पर गए क्योंकि वहाँ से दिखने वाला नज़ारा लाजवाब था l सामने थी किन्नर-कैलाश पर्वत श्रृंखला की बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ l इसे किन्नर कैलाश इसीलिए कहा जाता है क्योंकि यहाँ पर प्राकर्तिक रूप से बना हुआ 79 फीट ऊँचा शिवलिंग है और ये शिव लिंग हर क्षण रंग बदलता है l किन्नर कैलाश तक ट्रैक भी है पर इसे पूरा करना काफी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि किन्नर कैलाश का ये शिवलिंग लगभग 17,200 फीट की ऊँचाई पर स्तिथ है l
जिस वक़्त हम छत पर थे उस वक़्त होटल के पड़ोस के घर में धार्मिक अनुष्ठान हो रहा था l उस इलाके के स्थानीय देवता श्री नारायण जी को पालकी में बैठा कर वहाँ लाया गया था और काफी देर की पूजा-अर्चना और अनुष्ठान के बाद सबको प्रसाद के रूप में सेव से बनी स्थानीय वाइन पिलाई गयी l हमारे देश के छोटे छोटे गावों में आज भी स्थानीय रीति-रिवाज़ और संस्कृति का पालन किया जाता है हालाँकि ये दुःख की बात है कि बड़ी संख्या में लोगों के गाँवों से शहरों में पलायन से ये सब धीरे धीरे लुप्त होता जा रहा है l
कुछ ही देर बाद रजत, राजेश और अश्वनी भी होटल पहुँच गए और सीधे होटल की छत पर आ गए क्योंकि कुछ ही देर बाद अँधेरा होने वाला था l वो भी किन्नर कैलाश पर ढलती हुई शाम का पूरा मज़ा लेना चाहते थे और हर नज़ारे को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहते थे l काफी देर तक हम छत पर बैठे रहे, फ़ोटोज़ और विडियोज़ लेते रहे और कुदरत के इन शानदार नजारों का आनंद लेते रहे l इसके बाद रोज़ की तरह किस्से-कहानियों की महफ़िल सजाई, रात दस बजे खाना खाया, बाहर जा कर चहलकदमी की और रात लगभग ग्यारह बजे हम सब अपने अपने कमरों में सोने चले गए l जैसे जैसे हम काज़ा की तरफ बढ़ रहे थे, हर दिन के नज़ारे अलग और अद्वितीय होते जा रहे थे l
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खुबसूरत हरियाली |
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हरियाली से आच्छादित रास्ते |
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सतलज के प्रथम दर्शन |
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सतलज व्यू पॉइंट |
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सतजल व्यू पॉइंट |
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सतलज और सड़क |
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रामपुर की ओर |
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कहीं कहीं सतलज सड़क से कुछ ही फीट पर बहती है |
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सतलज में आकर मिलता हुआ छोटा सा पानी का दरिया |
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रामपुर से पहले छोटा सा गाँव |
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प्रसिद्ध श्री महिष मर्दिनी महालक्ष्मी मंदिर स्तिथ हनुमान जी |
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जेओरी की ओर |
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हादसों को रोकने के लिए खाई की ओर लगाई गई रेलिंग |
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बर्फ से ढकी पहाड़ियों का प्रथम दर्शन |
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किन्नोर की ओर |
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किन्नोर आते आते प्राकृतिक छठा बदलने लग जाती है |
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किन्नोर प्रवेश द्वार |
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खुबसूरत किन्नोर |
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किन्नोर के मजबूत पहाड़ |
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खुबसूरत किन्नोर |
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रास्ते में बहते हुए झरने |
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पहाड़ को बीच में से काट कर निकाला गया रास्ता |
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दूसरी तरफ से दिखने वाला दृश्य |
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किसी भी बाइकर के लिए आदर्श सड़क |
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रास्ते में मिलने वाला एक और पानी का प्रवाह |
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पहाड़ी छत |
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पहाड़ी छत |
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गज़ब ! |
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करछम-वांग्टू हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट |
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रिकांग-पिओ की ओर |
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फ्री कार वाश |
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रिकोंग - पिओ की ओर |
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करछम-वांग्टू डैम |
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करछम-वांग्टू डैम |
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रास्तों को सुगम बनाने की कवायद |
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कई जगह खराब सड़क के हिस्से भी आते है |
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छोटा सा गाँव |
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शोंगटोंग पुल |
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किसी चित्रकार की कल्पना |
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रिकोंग-पिओ की ओर जाती सकड़ी सड़क |
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बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ पास आती जा रही है |
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कल्पा की ओर |
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होटल की छत से दिखने वाला विहंगम दृश्य |
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किन्नर कैलाश |
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धार्मिक अनुष्ठान के लिए नारायण जी को लाते हुए |
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किन्नर कैलाश स्तिथ प्राकृतिक शिव लिंग |
स्पिति वैली यात्रा का सम्पूर्ण वृतांत
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